क्या कोचिंग से बनते हैं टॉपर?

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एशियाई विकास बैंक के हालिया हुए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि पेरेंट्‍स को स्कूलों से ज्यादा कोचिंग पर भरोसा है।

देश में निजी कोचिंग सेक्टर का कारोबार तेजी से फैल रहा है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि 2008 में कोचिंग सेक्टर का बजार करीब 6.4 डॉलर था।

यह सालाना 15 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। इस अध्ययन से यह विचार आता है कि सिर्फ बड़े शहरों और बड़े कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ही कोचिंग का सहारा लेते हैं। लेकिन यह बात भी अध्ययन में सामने आई की गांव में सरकारी स्कूलों के दूसरी कक्षा के 16 प्रतिशत बच्चे घर पर ट्‍यूशन पढ़ते हैं।


यह सर्वे हमारी शिक्षा व्यवस्था पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। पेरेंट्‍स को स्कूल की शिक्षा पर भरोसा नहीं है या फिर बच्चों को टॉपर बनाने की चाह उन्हें कोचिंग की राह दिखाती है। उन्हें स्कूलों के टीचर से ज्यादा ट्‍यूशन टीचर पर भरोसा है।

प्रतियोगी परीक्षाओं में टॉप कर चुके स्टूडेंट्‍स का कहना था कि सिर्फ कोचिंग के सहारे टॉपर नहीं बना जा सकता है। कोचिंग के बजाय सेल्फ स्टडी आवश्यक है। कोचिंग क्लास केवल गाइड कर सकती है। एक्जाम हॉल में पेपर आपको ही सॉल्व करना है।

एक अन्य टॉपर स्टूडेंट का कहना था कि अगर क्लास रूम स्टडी ध्यान दे दिया जाए तो कोचिंग की आवश्यकता ही नहीं है। जरूरी नहीं है कि टॉपर बनने के लिए नामी कोचिंग क्लास में जाएं। अगर स्टडी में कोई कठिनाई आ रही हो तो स्कूल टीचर की मदद भी ली जा सकती है।

इन तथ्यों के बाद हम कह सकते हैं कि कोचिंग किसी स्टूडेंट को टॉपर बनाने में हेल्प नहीं कर सकती है, अगर उसमें खुद योग्यता नहीं है। टॉप करने के लिए स्टूडेंट को खुद कड़ी मेहनत कर पढ़ाई करनी पड़ेगी।

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