कुंडली का श्रेष्ठ गुरु बनाता है शिक्षण में सफल

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गुरु ज्ञान का सागर है, गुरु ही भवसागर को पार लगाने वाला होता है। कहा भी गया है कि- गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरा। गुरुर्साक्षात्‌ परब्रह्मं तस्मै श्री गुरुदेव नमः॥

हमारे सबसे प्रथम गुरु माता-पिता होते हैं। जो हमें सलीके से जीना व सही रास्ते पर चलना सिखाते हैं। लेकिन गुरु वो होता है जो इस कष्ट भरे संसार को पार करने की शिक्षा देता है। गुरु कई प्रकार के होते है। हर गुरु विभिन्न प्रकार से ज्ञान देता है। लेकिन स च तो यह है कि जिससे हमें सीखने को मिले वही गुरु।

भारत देश में एकलव्य जैसे शिष्य भी हुए हैं, जिसने गुरु की प्रतिमा बनाकर धनुर्विद्या सीखीं और गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांग लिया जबकि एकलव्य तीरंदाज था। अंगूठे के बिना वह धनुष-बाण का प्रयोग नहीं कर सकता था। फिर भी गुरु के मांगने पर एकलव्य ने अविलंब अपना अंगूठा काट कर गुरु दक्षिणा में दे दिया।

इस देश की धरती पर कई महान गुरु भी हुए है जैसे गुरु द्रोणाचार्य, आद्यगुरु शंकराचार्य, सिक्खों के गुरुनानकजी, बोहरा समाज के धर्मगुरु डॉं. सैयदना साहब आदि। यदि हमें अपनी उम्र से छोटे व्यक्ति या बालक से भी शिक्षा मिले तो वह भी गुरु ही कहलाता है। गुरु की महत्ता बहुत विस्तृत है, फिर भी वह गुरु हमेशा याद रहते हैं जो हमें जीवन जीने की दिशा दिखाते है। ऐसे गुरुओं के सम्मान में ही 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

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महान शिक्षक डॉं. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे देश के राष्ट्रपति बने। जानते हैं डॉं. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की कुंडली को :-

राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 में दोपहर 1.30 मिनट पर तुरीतानी में धनु लग्न मिथुन नवमांश में हुआ। आपकी कुंडली में जनता भाव से संबंधित लग्न व चतुर्थ भाव का स्वामी गुरु है जो पंचम (विद्या व व्यय भाव) और द्वादश भाव के स्वामी मंगल के साथ द्वादश भाव में ही स्थित है। मंगल व गुरु द्वादश भाव में होने के कारण आप विद्या के क्षेत्र में अग्रणी रहें। साथ ही शिक्षा जगत से आकर कई महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहे। प्रमुख राजदूत, फिर उपराष्ट्रपति और उसके देश के राष्ट्रपति बनें।

आपको राष्ट्रपति का पद बहुत बाद में मिला। इसका एक कारण कालसर्प योग भी रहा। आपकी पत्रिका में भाग्य का स्वामी सूर्य, चंद्रमा के साथ है, जो भाग्य की प्रबलता को इंगित भी करता है। सूर्य का उपनक्षत्र गुरु है वहीं गुरु का उपनक्षत्र बुध है और आपकी पत्रिका में बुध राज्य भाव दशम में उच्च का होकर एकादशेश व षष्ठेश भाव के स्वामी शुक्र के साथ है। यह स्थिति नीच भंग भी कही जाएगी।

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आपको पहले राजदूत, फिर उपराष्ट्रपति और आखिरी में राष्ट्रपति पद मिला। एक शिक्षक का इससे बडा सम्मान और क्या हो सकता है कि वह देश का प्रथम नागरिक बनें। गुरु ज्ञान का कारक है व चंद्र मन का। अक्सर देखने में आया है कि जिनकी जन्मपत्रिका में गुरु स्वराशि धनु का या मित्र राशि वृश्चिक, मेष का रहा, वे लोग शिक्षा जगत में काफी सफल रहे।

इसी प्रकार धर्मगुरुओं की पत्रिकाओं में मीन का गुरु या उच्च का गुरु रहा व चंद्र साथ भी देखा गया। डॉं. सैयदना साहब के जन्म के समय गुरु, चंद्रमा के साथ है। आद्यगुरु शंकराचार्य के जन्म के समय भी गुरु मीन राशि में था। गुरु ही ज्ञान का सागर होता है आइए हम गुरु का सम्मान करें और अपने जीवन को सुधारें।

सामान्य व्यक्ति भी अगर अपनी कुंडली के बृहस्पति दोष को दूर करना चाहे तो गुरु पूर्णिमा या शिक्षक दिवस पर अपने गुरु का सम्मान कर उन्हें यथोचित भेंट देकर इस दोष को कम कर सकते हैं।


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