Parashuram Janmotsav 2022
भगवान परशुरामजी कौन थे: विष्णु के छठे 'आवेश अवतार' भगवान परशुराम का जन्म सतयुग और त्रेतायुग के संधिकाल में वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर प्रदोष काल में हुआ था। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में 6 उच्च के ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भृगु ऋषि के कुल में परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ था। ऋचीक-सत्यवती के पुत्र जमदग्नि, जमदग्नि-रेणुका के पुत्र परशुराम थे। ऋचीक की पत्नी सत्यवती राजा गाधि (प्रसेनजित) की पुत्री और विश्वमित्र (ऋषि विश्वामित्र) की बहिन थी। परशुराम सहित जमदग्नि के 5 पुत्र थे।
परशुराम को शास्त्रों की शिक्षा दादा ऋचीक, पिता जमदग्नि तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा अपने पिता के मामा राजर्षि विश्वमित्र और भगवान शंकर से प्राप्त हुई। परशुराम योग, वेद और नीति में पारंगत थे। ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में भी वे पारंगत थे। उन्होंने महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की। उन्हें भगवान शिव ने फरसा नामक शस्त्र प्रदान दिया था। पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने परशुरामजी को अधर्म को नष्ट करने के लिए एक दिव्य फरसा, भार्गवस्त्र प्रदान किया था। इसी फरसे से उन्होंने 36 बार हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का वध किया था। कहते हैं कि उन्होंने 21 अभियानों में हैहयवंशी 64 राजवंशों का नाश किया था। सतयुग में जब एक बार गणेशजी ने परशुराम को शिव दर्शन से रोक लिया तो, रुष्ट परशुराम ने उन पर परशु प्रहार कर दिया, जिससे गणेश का एक दांत नष्ट हो गया और वे एकदंत कहलाए। परशुराम आज भी जिंदा हैं, क्योंकि उन्हें अजर अमर होने का वरदान मिला है।