चाँद के लिए उड़ चला चंद्रयान

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2008 (16:13 IST)
चंद्रमा के अध्ययन की महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत बनाया गया चंद्रयान-1 श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केन्द्र से बुधवार सुबह अंतरिक्ष यान पीएसएलवी सी-11 से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया गया।

इसरो के चार चरणों वाले 316 टन वजनी और 44.4 मीटर लंबा अंतरिक्ष यान चंद्रयान-1 के साथ अन्य 11 पे लोड भी अपने साथ आसमान में ले गया।

सुबह छह बजकर 21 मिनट पर झुरमटों के बीच से पीएसएलवी सी-11 ने आशाओं और उत्साह के बीच उड़ान भरनी शुरू की और रोशनी और धुएँ का एक विशाल गुबार अपने पीछे छोड़ गया।

इस महान क्षण के मौके पर वैज्ञानिकों का हजूम इसरो के मुखिया जी माधवन नायर, इसरो के पूर्व प्रमुख के कस्तूरीरंगन के साथ मौजूद था। इन लोगो ने रूकी हुई साँसो के साथ चंद्रयान-1 की यात्रा पर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लगातार नजर रखी और एक महान इतिहास के गवाह बने।

चंद्रयान-1 का खास मकसद चंद्रमा के वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ाने के साथ ही देश की तकनीकी क्षमताओं का और ऊँचाई पर पहुँचाने और भारतीय वैज्ञानिकों को भूमंडलीय अनुसंधान के चुनौतीपूर्ण अवसरों को उपलब्ध कराना है। चंद्रयान प्रथम चंद्रमा के उच्च श्रेणी के त्रि-आयामी चित्र भेजने के अलावा पूरे चंद्र धरातल की रासायनिक संरचना का भी पता लगाने का प्रयास करेगा। चंद्रयान दो वर्ष तक सक्रिय रहेगा।

ट्रांसफर कक्षा में पहुँचा : भारत के पहले मानवरहित अभियान चंद्रयान-। को आज ध्रुवीय प्रक्षेपण अंतरिक्ष वाहन पीएसएलवी सी- 11 ने सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से रवाना होने के 19 मिनट बाद ट्रांसफर कक्षा में पहुँचा दिया।

सभी चरण सटीक : इसरो प्रमुख जी माधवन नायर ने चंद्रयान-। की सफलता पर वैज्ञानिकों को बधाई देते हुए कहा कि प्रक्षेपण के सभी चरण सटीक रहे। वर्षा और तूफान के बावजूद प्रक्षेपण के समय आसमान एकदम साफ था।

15 दिन का सफर : चंद्रयान-1 आज सुबह अंतरिक्ष यान पीएसएलवी सी-11 से प्रक्षेपित होने के बाद सफलतापूर्वक उच्च दीर्घवृत्ताकार कक्षा में प्रवेश कर गया। प्रारंभिक कक्षा में आने के बाद चंद्रयान ने अपनी यात्रा का पहला अहम चरण पूरा कर लिया। अब यह पंद्रह दिन के सफर के बाद चंद्रमा की सतह से केवल सौ किलोमीटर दूर होगा।

पहल करने वाला छठा देश : इस गौरवमयी उपलब्धि के बाद भारत अंतरिक्ष में ऐसी पहल करने वाला विश्व का छठा देश बन गया है। इससे पहले यह गौरव रूस, अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान और चीन को ही हासिल था।

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