- किरण वाईकर किसी भी खिलाड़ी या टीम का चरित्र तब पता चलता है जब मुकाबला कड़ा हो और भारत व ऑस्ट्रेलिया के बीच जारी वन-डे श्रृंखला में स्थिति कुछ ऐसी ही थी। चार बार के विश्व विजेता ऑस्ट्रेलिया के सामने थी नंबर वन बनने को बेताब भारतीय टीम।
स्थितियाँ पूरी तरह टीम इंडिया के पक्ष में थीं, फिर भी 6 मैचों की समाप्ति के बाद परिणाम समस्याओं से जूझ रहे कंगारुओं के पक्ष में है। नंबर वन का ताज दाँव पर था, लेकिन श्रृंखला प्रारंभ होने से पूर्व टीम चयन के समय से लेकर गुवाहाटी मैच तक की गई कुछ गलतियों की वजह से मेजबान टीम ने यह सुनहरा अवसर गँवा दिया।
कंगारुओं की विशेषता ही यह रही कि चोट की वजह से उनके खिलाड़ी घर लौटे थे, हौसला नहीं। पोंटिंग ने अपने युवा और अपेक्षाकृत कम अनुभवी खिलाड़ियों के साथ मिलकर भारतीय शेरों का उन्हीं के मैदानों तथा दर्शकों के बीच ऐसा शिकार किया जिसका दर्द सभी को वर्षों तक सालता रहेगा।
भारतीय कप्तान महेंद्रसिंह धोनी भी जानते थे कि अपनी नेतृत्व क्षमता में एक और नगीना जड़ने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा, क्योंकि कंगारुओं की ताकत लगातार घट रही थी, लेकिन 2-1 की बढ़त के बाद लगातार 3 मैच हारने के साथ ही उन्होंने न केवल श्रृंखला गँवा दी वरन नंबर वन बनने का मौका भी हाथ से जाता रहा।
हमने जहाँ युवा स्पिनर अमित मिश्रा और तेज गेंदबाज सुदीप त्यागी को मौका ही नहीं दिया, वहीं ऑस्ट्रेलिया ने डग बोलिंगर, शॉन मार्श, क्लिंट मैके, टिम पैनी तथा ग्राहम मनोऊ को मैदान पर उतारा और सभी ने उम्दा प्रदर्शन कर अपनी प्रतिभा दिखाई।
उन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारत जैसी टीम को उसी के घर में हराकर दिखा दिया कि क्यों उसे नंबर वन कहा जाता है। यह सही है कि टीम इंडिया का जुझारूपन पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है, लेकिन अभी दुनिया की नंबर वन टीम कहलाने और शीर्ष पर बने रहने की वास्तविक हकदार तो ऑस्ट्रेलिया ही है। भारतीय टीम को उसकी वास्तविकता का आईना दिखाने वाली चैंपियन टीम को बधाई। आइए अब बात करें गुवाहाटी वन-डे की।
श्रृंखला में बने रहने के लिए भारत को यह मैच हर हाल में जीतना जरूरी था, लेकिन खिलाड़ी मैदान पर उतरें उसके पूर्व ही कप्तान धोनी द्वारा लिए गए एक आत्मघाती निर्णय ने मैच तथा श्रृंखला का फैसला कंगारुओं के पक्ष में कर दिया। धोनी जानते थे कि मैच जल्दी शुरू हो रहा है और इस वजह से शुरुआती 1 घंटे में गेंदबाजों को नमी का लाभ मिलेगा।
इसके बावजूद उन्होंने पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय यह सोचकर लिया कि उनके बल्लेबाज ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों को हावी नहीं होने देंगे। अपने तेज गेंदबाजों पर तो उन्हें भरोसा था ही नहीं। बल्लेबाजों पर अति आत्मविश्वास करने का दुष्परिणाम शीघ्र ही सामने आ गया जब मेहमान गेंदबाजों ने अपना जलवा दिखाते हुए ५ शीर्ष भारतीय बल्लेबाजों को 27 रनों के अंदर पैवेलियन लौटा दिया।
वो तो भला हो रवींद्र जडेजा (57) और प्रवीण कुमार (54) का, जिन्होंने अर्द्धशतकीय पारियाँ खेलते हुए टीम को 170 रनों के सम्मानजनक स्कोर तक पहुँचाया, नहीं तो एक समय तो ऐसा लग रहा था कि भारतीय पारी तीन अंकों तक भी नहीं पहुँच पाएगी।
जडेजा और प्रवीण के प्रयासों के बावजूद ऑस्ट्रेलिया ने लक्ष्य को 41.5 ओवरों में हासिल कर श्रृंखला में 4-2 की अपराजेय बढ़त हासिल कर ली। धोनी द्वारा स्पिनरों के मददगार इस पिच पर अमित मिश्रा को नहीं खिलाया जाना भी समझ के बाहर था।