जब चलता था दूरदर्शन का राज

रविवार, 15 सितम्बर 2013 (16:31 IST)
प्रस्तुति- ऋषि गौतम

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भले ही आज की नई पीढ़ी को इस बात पर यकीन न हो, पर सच तो यही है कि दूरदर्शन के शुरुआती कार्यक्रमों की लोकप्रियता का मुकाबला आज के किसी चैनल के कार्यक्रम शायद ही कर पाएं। चाहे 'रामायण' हो या 'महाभारत', 'चित्रहार' हो या कोई फिल्म, ‘हम लोग’ हो या ‘बुनियाद’, इनके प्रसारण के वक्त जिस तरह लोग टीवी से चिपके रहते थे, वह सचमुच अनोखा था।

आज इसके स्थापना दिवस के मौके पर आपको रूबरू करवाते हैं इसके अबतक के सफर से.......

भारत में टेलीविजन के इतिहास की कहानी दूरदर्शन के इतिहास से ही शुरू होती है। संचार-क्रांती के मौजूदा दौर में भी कश्मीर से कन्याकुमारी तक 92 प्रतिशत भारतीय घरों तक पहुंचने वाला आकाशवाणी के अलावा यह अकेला माध्यम है। आज भी हर एक भारतीय को इस पर गर्व है कि उसके पास दूरदर्शन के रूप में टेलीविजन का गौरवशाली इतिहास मौजूद है। आज भी दूरदर्शन का नाम सुनते ही अतीत के कई खट्टे-मीठे अनुभव याद आ जाते है। टीवी चैनलों में निजी घरानों की बाढ़ के बीच दूरदर्शन सबसे बड़ा, सबसे सक्षम और सबसे अधिक उत्तरदायी चैनल समूह के रूप में यह स्थापित है।

15 सितंबर 1959 को दिल्ली में दूरदर्शन का पहला प्रसारण प्रयोगात्मक आधार पर आधे घंटे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रमों के रूप में शुरू किया गया था। किसी भी मीडिया के लिए पचास साल से ज्यादा का सफर बहुत मायने रखता है वक्त के साथ चलने में दूरदर्शन ने कई उतार-चढ़ाव तय किए हैं। बावजूद इसके यह सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के उद्देश्यों से डिगा नहीं है। अब तक दूरदर्शन ने जो विकास यात्रा तय की है वह काफी प्रेरणादायक है।

देश में टीवी के महत्व को स्थापित करने में दूरदर्शन की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता। सही मायने में अर्थपूर्ण कार्यक्रमों और भारतीय संस्कृति को बचाए रखते हुए देश की भावनाओं को स्वर देने का काम दूरदर्शन ने ही किया है। सन 1959 से लेकर 2013 तक के लगभग अपने छह दशक में इसने हर वो मुकाम हासिल किया है जिसका उसने लक्ष्य बना रखा था। हालांकि दूरदर्शन की विकास यात्रा प्रारंभ में काफी धीमी रही लेकिन 1982 में रंगीन टेलीविजन आने के बाद लोगों का रूझान इस और ज्यादा बढ़ा और एशियाइ खेलों के प्रसारण ने तो क्रांति ही ला दी।

एक दौर था जब दूरदर्शन का राज चलता था। कौन याद नहीं करना चाहेगा उन सुनहरे दिनों को जब मोहल्ले के इक्के-दुक्के रइसों के घर में टीवी हुआ करता था और सारा मोहल्ला टीवी में आ रहे कार्यक्रमों को आश्चर्यचकित सा देखता था। अगर सिर्फ मनोरंजन की बात करें तो हम लोग,पारिवारिक कार्यक्रम हमलोग ने तो लोकप्रियता का सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये थे। इसके बाद आया भारत और पाकिस्तान के विभाजन की कहानी पर बना 'बुनियाद' जिसने विभाजन की त्रासदी को उस दौर की पीढ़ी से परीचित कराया। इस धारावाहिक के सभी किरदार आलोक नाथ(मास्‍टर जी), अनीता कंवर(लाजो जी), विनोद नागपाल, दिव्या सेठ, घर-घर में लोकप्रिय हो चुकी थे। फिर तो एक के बाद एक बेहतरीन और शानदार धारावाहिकों ने दूरदर्शन को घर-घर में पहचान दे दी। दूरदर्शन पर 1980 के दशक में प्रसारित होने वाले मालगड़ी डेज, ये जो है जिंदगी, रजनी, नुक्कड़, ही मैन, सिग्मा,स्पीड, जंगल बुक, वाह जनाब, कच्ची धूप, तमस, मुंगेरीलाल के हसीन सपने, सुरभि, शांति चित्रहार, कथासागर, विक्रम बेताल आदि ने जो मिसाल कायम की है उसकी तुलना आज के शायद ही किसी धारावाहिक से न की जा सकती।

पुराने ब्लैक एंड व्हाइट टीवी के सामने बैठे किसान भाई 'कृषि दर्शन' और मूक बधिरों के समाचार बड़े चाव से देखते थे। बीच -बीच में आने वाले छोटे विजुअल्स जैसे 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' 'प्यार की गंगा बहे देश में एका रहे' 'स्कूल चलें हम' 'सूरज एक चंदा तारे अनेक' 'एक चिड़िया अनेक चिड़िया' 'एक अन्न का ये दाना सुख देगा मुझको मनमाना' आदि भी बहुत ही चाव से देखे जाते थे। रविवार का दिन तो मानो दूरदर्शन का ही होता था। लोग सुबह उठकर 'रंगोली' देखते, फिर नाश्ता लेकर टीवी से चिपक जाते। दोपहर में ही कुछ समय के लिए टीवी से अलग हटते थे फिर शाम को हर रविवार को दिखाई जाने वाली फिल्म देखने बैठ जाते थे। उस समय के संडे का मतलब होना था आजकल का टोटल 'फन डे'।

रामायण और महाभारत के प्रसारण ने तो टीवी को ईश्वरत्व प्रदान किया। जब यह धारावाहिक आते थे तो पूरा परिवार हाथ जोड़कर देखता था। रामायण में राम और सीता का रोल अदा करने वाले अरूण गोविल और दीपिका को लोग आज भी राम और सीता के रुप में पहचानते है तो नीतिश भारद्वाज महाभारत सीरियल के कृष्ण के रुप मे जाने गए। वहीं भारत एक खोज, दि सोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान और चाणक्य ने लोगों को भारत की ऐतिहासिक तस्वीर से रूबरू कराया।

दूरदर्शन ने न जाने ऐसे कितने ही सफल धारावाहिकों के माध्यम से टीवी मनोरंजन के क्षेत्र में कई मिसाले कायम की है। सही मायने में दूरदर्शन ने मनोरंजन के मायने ही बदल दिए थे। दूरदर्शन ने मनोरंजन के साथ-साथ लोगों को शिक्षित करने में भी अहम भूमिका अदा की है। अपने कार्यक्रम के माध्यम से मीडिया में एजुटेंमेंट की आधारशिला दूरदर्शन ने ही रखी है।

अगर विज्ञापनों की बात करें तो मिले सुर मेरा तुम्हारा जहां लोगों को एकता का संदेश देने में कामयाब रहा वहीं बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर-हमारा बजाज से अपनी व्यावसायिक क्षमता का लोहा भी मनवाया। ग्रामीण भारत के विकास में भी दूरदर्शन के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। सन् 1966 में कृषि दर्शन कार्यक्रम के द्वारा दूरदर्शन देश में हरित क्रांति लाने का सूत्रधार बना।

सही मायने में अर्थपूर्ण कार्यक्रमों और भारतीय संस्कृति को बचाए रखते हुए देश की भावनाओं को स्वर देने का काम दूरदर्शन ने किया है। सूचना देने के उद्देश्य से 15 अगस्त 1965 को प्रथम समाचार बुलेटिन का प्रसारण दूरदर्शन से किया गया था और यह सफर आज भी बदस्तूर जारी है।

2003 में तो दूरदर्शन ने तो पृथक रूप से 24 घंटे का समाचार चैनल भी शुरू कर दिया। देश की अनेक भाषाओं में समाचार प्रसारित करने वाला यह एकमात्र चैनल है जिसकी पहुंच देश की आधी जनसंख्या तक है।

आज दूरदर्शन के राष्‍ट्रीय नेटवर्क में 64 दूरदर्शन केन्‍द्र या निर्माण केन्‍द्र,24 क्षेत्रीय समाचार केंद्र 126 दूरदर्शन रख रखाव केन्द्र, 202 उच्‍च शक्ति ट्रांसमीटर, 828 लो पावर ट्रांसमीटर, 351 अल्‍पशक्ति ट्रांसमीटर, 18 ट्रांसपोंडर, 30 चैनल तथा डीटीएच सेवा आती है। विभिन्‍न सवर्गों में 21708 अधिकारियों तथा कर्मचारियों के पद स्‍वीकृत हैं। आज दूरदर्शन के सामने भले कई सारी मुश्किलें हैं। लेकिन इसकी सबसे बड़ी मुश्किल है अपनी साख को बचाना। सरकारी भोंपू के आरोप से अबतक इसे छुटकारा नहीं मिल पाया है। बावजूद इसके आज भी दूरदर्शन समूचे भारत का समाचार-विचार और सांसकृतिक कार्यक्रमों का अकेला प्रस्तोता है। अपनी जड़ों की तरफ लौटने, जड़ों से जोड़ने, उसपर संवाद करने और सही मायने में जनमाध्यम बनने की ताकत आज भी दूरदर्शन में ही है। बड़ा सवाल यह है कि क्या दूरदर्शन अपनी इस ताकत को पहचान कर आज के समय के प्रश्नों से जूझने को तैयार है?

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