नए वर्ष में अमल की गारंटी चाहिए

-अभछजलान
आइए, नए वर्ष के पहले दिन कुछ विशेष बात करें। विभिन्न विचारों, विश्लेषणों, टिप्पणियों से भरपूर 2009 आज अपना पहला कदम बढ़ाएगा।

नई कल्पना, नए सपने, नए संकल्प, नई वचनबद्धता, नए कार्यक्रम, नई योजनाएँ, नए आश्वासन...ऐसी अनेकानेक नवीनताओं से नए वर्ष का ताना-बाना बुना गया है। बुना जाता है। वर्ष का पहला दिन- खुशी, उल्लास और आशाओं से भरपूर कई संदेश अंकित कर जाता है। पहले दिन का यह वातावरण बीते वर्ष के कड़वे, मीठे अनुभवों को बहुत ही अल्प समय के लिए भुला पाता है।

  नई कल्पना, नए सपने, नए संकल्प, नई वचनबद्धता, नए कार्यक्रम, नई योजनाएँ, नए आश्वासन...ऐसी अनेकानेक नवीनताओं से नए वर्ष का ताना-बाना बुना गया है।      
जीवन के दैनंदिन की वास्तविकताओं और चुनौतियों में वे जीवंत ही रहते हैं। नए वर्ष के साथ बीते वर्ष की पीड़ाओं से मुक्ति पाने या मिलने की गतिविधियाँ या कार्रवाइयाँ शुरू होंगी, क्या इस पर विश्वास किया जा सकता है?

सार्वजनिक जीवन और नागरिक जीवन के क्षेत्रों में नए वर्ष की अगवानी में अनेक घोषणाएँ करने की नई परंपरा शुरू हुई है। यों इस बार बीते वर्ष में भी ऐसी घटनाएँ हुईं, परिस्थितियाँ बनीं जिनका प्रभाव नए वर्ष 2009 की जीवनशैली को प्रभावित करेगा।

जैसे आर्थिक तंगी, छह राज्यों में नई पाँच वर्षीय सरकार की पदस्थापनाएँ, आतंकवादी घटनाओं से उपजी समस्याएँ...आदि। इनके परिणामस्वरूप होने वाले परिवर्तनों की रीति-नीति नए वर्ष में देश के नागरिक को क्या स्वरूप देगी, तात्कालिक रूप से आम आदमी के जीवन पर उसका क्या प्रभाव होगा, अभी उस संदर्भ में अनुमान लगाना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है।

किन्तु इनके अलावा भी एक सतह है। वहाँ लिए जाने वाले निर्णयों, संकल्पों और योजनाओं का सीधा-सीधा परिणाम आम और खास आदमी दोनों के जीवन पर पड़ता है। वह उनके जीवन को पीड़ादायी या सुविधाजनक रूप से आसान बनाती या बिगाड़ती है।

यह सतह है स्वायत्त शासन संस्थाओं की, जैसे पंचायतें, नगर पालिका, नगर निगम, विकास प्राधिकरण...आदि। नागरिक जीवन में इनकी जवाबदारियों की बहुत महत्ता है। क्या नए वर्ष में इनकी भूमिका जवाबदारीपूर्ण होगी? नए वर्ष के पहले दिन इस पर विचार करना उतना ही महत्वपूर्ण है। देश या राष्ट्र केवल केंद्रीय स्तर पर सोच-विचार करने से नहीं बनते।

जरूरी होता है व्यवस्था की जवाबदारियों की जिम्मेदारी जिन-जिन सतहों पर विस्तारित हैं वे सभी अपनी भूमिका को पूरी तरह से अपेक्षित स्वरूप में निभाएँ। होता यह है कि दिन विशेष, अवसर विशेष, परिस्थिति विशेष के मौकों पर जवाबदारी की भूमिका में घोषणाएँ कर दी जाती हैं और फिर धीरे-धीरे उन्हें आसानी से भुला दिया जाता है। या फिर ऐसे तर्क या कारणों की ढाल तैयार की जाती है, जो घोषणानुसार अमल नहीं होने को वाजिब या लाचारी का स्वरूप दे दे।

क्या नए वर्ष में जवाबदार संस्थाएँ अपनी इस पद्धति में कोई परिवर्तन कर पाएँगी? प्रजातांत्रिक व्यवस्था में, विभिन्न क्षेत्रों में, व्यवस्था की विभिन्न सतहों पर अलग-अलग तरीकों से निर्वाचित निजाम स्थापित है। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष यह राजनीतिक दलों की कोख से जुड़ा हुआ होता है।

स्वाभाविक ही देश के राजनीतिक धरातल पर जितनी गैर जवाबदाराना प्रवृत्तियाँ पनपी हैं, उनका प्रभाव विभिन्न स्तर पर पदासीन प्रतिनिधियों पर भी है। आम आदमी को प्रभावित करने की शब्दावलियाँ भी उन्होंने बना ली हैं। ऐसी शब्दावली के चार चरण हैं- (1) संकल्प, (2) घोषणा, (3) आश्वासन, (4) अमल। इनमें से पहले तीन चरणों पर तो बेबाक साहस के साथ अमल हो जाता है। जानने व सुनने वालों को विश्वास हो जाता है कि बस अब तो जो कहा जा रहा है वह होकर ही रहेगा। महीनों व कभी-कभी वर्षों बाद पता चलता है कि जो होना था वह कुछ हुआ ही नहीं या अधूरा हुआ।

क्या 2009 में या उसकी अगवानी में विभिन्न स्तरों पर, विभिन्न क्षेत्रों में, विभिन्न सतहों पर जो संकल्प लिए गए हैं, घोषणाएँ की गई हैं, आश्वासन परोसे गए हैं- उन पर निर्धारित या अपेक्षित भाव से अमल होगा- लाख रुपए का यह प्रश्न अपना वास्तविक उत्तर पाएगा?

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