विरासत में चुनौतियों का पहाड़

- रासविहारी
दिल्ली में सरकार किसकी बनेगी यह बेशक कल तय होगा पर नई सरकार के सामने क्या-क्या चुनौतियां हैं यह पहले से ही तय है। नई सरकार को कई मोर्चों पर एक साथ जूझना पड़ेगा। राष्ट्रमंडल खेल, यमुना की सफाई, अनधिकृत कॉलोनियां, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, परिवहन, उद्योग, बिजली और पानी के मसले पर सरकार को तेजी से काम करना होगा। इसके साथ ही दिल्ली की बढ़ती आबादी के मद्देनजर मकानों की व्यवस्था के साथ ही सभी जरूरतों को पूरा करना सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। सरकार को स्लम बस्तियों में रहने वाले और शहरी गरीबों के लिए दस लाख मकान बनाने हैं। यह वादा चुनावी ही ज्यादा साबित हो रहा है। इतने मकान बनाने के लिए सरकार के पास जमीन ही नहीं है।

राष्ट्रमंडल खेलों से जुड़ी परियोजनाएं तय समय से बहुत पीछे चल रही हैं। बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को सरकार की हरी झंडी मिलने के बाद दिल्ली विकास प्राधिकरण और दिल्ली शहरी कला आयोग से मंजूरी मिलनी बाकी है। देर से मंजूरी मिलने के बाद सलीमगढ़ फोर्ट बाईपास, बारापूला नाले पर एलिवेटिड रोड. राष्ट्रीय राजमार्ग से चिल्ला रेगुलेटर तक कॉरीडोर, ईस्ट वेस्ट कॉरीडोर जैसी कई परियोजनाओं पर तो काम शुरू भी नहीं हो पाया है। कई परियोजनाएं बहुत ही सुस्त रफ्तार से चल रही हैं।

जिस गीता कॉलोनी पुल को 2008 की शुरुआत में चालू कराने का दावा किया गया था, उसे दिसंबर तक चालू नहीं किया जा सका है। परियोजनाओं में देरी की वजह सरकार बहुनिकाय प्रणाली को बताती रही है। एक परियोजना के लिए 15 विभागों से मंजूरी ली जाती है। सबसे बड़ी चुनौती तो सरकार के सामने यही व्यवस्था है। सरकार किसी भी दल की बने, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलने वाला है। जब तक पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलता, बहुनिकाय प्रणाली जारी रहेगी। कांग्रेस ने पूर्ण राज्य की जगह विशेष दर्जा दिलाने की बात कही है जबकि भाजपा पूर्ण राज्य का राग बजा रही है।

दिल्ली के सरकारी और निजी अस्पतालों में 36 हजार बिस्तर मरीजों के लिए उपलब्ध हैं। दिल्ली में पांच साल पहले प्रति एक हजार की आबादी पर 2.2 बिस्तर उपलब्ध थे। बढ़ती आबादी के कारण यह औसत भी कम हो गया है। बढ़ती आबादी के कारण और आसपास के राज्यों से मरीजों के आने से अस्पतालों में भीड़ लगी रहती है। दिल्ली के लोगों को इलाज की सुविधा दिलाना सरकार के सामने चुनौती है। स्वास्थ्य महकमे में सबसे ज्यादा परेशानी डाक्टर, नर्स, पैरा मेडिकल स्टाफ और अन्य कर्मचारियों की कमी है। स्वास्थ्य विभाग के अलावा शिक्षा, लोक निर्माण विभाग, वैट, आबकारी, म, परिवहन, दिल्ली परिवहन निगम, पर्यावरण, वित्त. खाद्य एवं आपूर्ति जैसे विभागों में भी कर्मचारियों की कमी है। दिल्ली के विभिन्न विभागों में 50 हजार कर्मचारियों की कमी है।

राष्ट्रमंडल खेलों के लिए दिल्ली को चमकाने के साथ ही यमुना नदी को साफ करने की घोषणा सरकार ने की थी। यमुना की सफाई पर पिछले कुछ सालों में 1800 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। भाजपा ने यमुना की सफाई को चुनावी मुद्दा भी बनाया था। यमुना की सफाई कैसे होगी और वह भी राष्ट्रमंडल खेलों से पहले यह चुनौती सरकार के सामने रहेगी।

अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने के मुद्दे पर 15 साल से राजनीति चल रही है। कांग्रेस सरकार ने चुनाव से दो महीने पहले अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने के लिए अस्थाई सर्टिफिकेट दिए हैं। अनधिकृत कॉलोनियों में विकास कार्य भी हो रहे हैं। असली चुनौती अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने की होगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर सन 2000 में रिहायशी कॉलोनियों में चल रहे उद्योगों को बन्द करके दूसरी जगह बसाने का काम शुरू किया गया था। 70 फीसदी से ज्यादा उद्योगों वाले रिहायशी इलाकों को औद्योगिक क्षेत्र बनाने का ऐलान किया गया था। अधिसूचित औद्योगिक क्षेत्रों के लिए कुछ नियम और शर्त तय किए गए थे। इन शर्तों के अनुसार किसी भी क्षेत्र में कोई काम नहीं हुआ। इन क्षेत्रों के बारे में भी नई सरकार को फैसला करना होगा।

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