गर्भग्रीवा के कैंसर से सुरक्षा

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अर्थतंत्र के बढ़ते दबावों के चलते आज किसी भी देश की प्रगति का मापदंड सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), शेयर बाजार के सूचकांक आदि से नापा जाता है, लेकिन नागरिकों के स्वास्थ्य की स्थिति और सामाजिक उत्थान का पैमाना महिलाओं और बच्चों का स्वास्थ्य होता है।यह दुःखद तथ्य है कि आर्थिक प्रगति सभी उजले दावों के बावजूद दुनिया में गर्भाशय ग्रीवा के 60 प्रतिशत केसेस भारत में पाए जाते हैं। आज 1 लाख से भी अधिक महिलाएँ हर साल गर्भग्रीवा के कैंसर से पीड़ित हो रही हैं। इस आँकड़े का शर्मनाक पहलू यह है कि यह बीमारी जो महामारी की तरह फैल रही है, उसे जल्दी पकड़ लिया जाए तो हमेशा के लिए इससे छुटकारा भी मिल सकता है। हमारे देश में केवल मुंबई और दिल्ली ही इस कैंसर से मुक्त शहर माने जा सकते हैं जबकि यह पूरे देश में फैल रहा है

कॉल्कोस्कोपी एक ऐसा हथियार है जो इस बीमारी पर काबू पाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इस उपकरण से गर्भग्रीवा के मुख के हिस्से को 40 गुना अधिक बड़ा करके देखा जा सकता है। इससे कैंसर के रोगाणुओं को फैलने से पहले पहचानने में आसानी हो जाती है। यह जाँच कुल 15 मिनटों में संपन्ना की जा सकती है। इसके अलावा रिपोर्ट भी तत्काल हासिल की जा सकती है। मरीज को न तो कोई परेशानी होती है और न दर्द होता है।

पेप स्मियर टेस्ट भी इसी तरह का एक दूसरा टेस्ट है जो गर्भग्रीवा के कैंसर को शुरुआती अवस्था में पकड़ सकता है। शरीर के इस हिस्से से द्रव लेकर बनाई गई स्लाइड से, बायोप्सी से अथवा कॉल्कोस्कोपी से इस बीमारी की पुख्ता जाँच संभव है। 35 साल की उम्र के बादहर महिला का साल में एक बार यह टेस्ट किया जा सकता है। इसके अलावा जिनकी शादी बहुत कम उम्र में हो जाती है और 5 से अधिक बच्चे पैदा हो चुके हों, उन महिलाओं को भी यह जाँच कराते रहना चाहिए। साथ ही जिनके सफेद पानी निकलता हो, संभोग के बाद खून आताहो, मासिक बंद होने के बाद भी खून आता हो, पीरियड के दिनों के गुजर जाने के बाद भी खून आता हो, ऐसी महिलाओं को जाँच अवश्य कराना चाहिए।

यदि कॉल्कोस्कोपी अथवा पेपस्मियर से गर्भग्रीवा के कैंसर की पुष्टि हो जाती है तो एलईईपी जैसा कोई छोटा ऑपरेशन भी किया जा सकता है। इससे पूरा गर्भाशय निकालने की जरूरत नहीं होती। हमारे देश में महिलाओं की स्वास्थ्य की स्थिति बेहद खराब है। इसका एकबहुत बड़ा कारण यह है कि हमारे यहाँ महिलाओं के साथ भेदभाव किया जाता है। उनकी किसी भी जरूरत को नजरअंदाज किया जाता है। रोग की अनदेखी करने से वह इतना बढ़ जाता है कि कई बार महिलाओं की जान तक पर बन आती है। यही वजह है कि महिलाएँ भी अपने स्वास्थ्य के प्रति उदासीन रहती हैं और अपनी समस्याएँ घर के पुरुषों को नहीं बता पातीं

- डॉ. शिल्पा भंडारी, एमबीबीएस (एमडी) प्रसूति एवं स्त्री रो
एमबीबीएस कोर्स में 14 स्वर्ण पदक हासिल किए हैं।

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