महर्षि वेद-व्यास को जब 'महाभारत' की कथा को लिपिबद्ध करने का विचार आया तो आदि देव ब्रह्माजी ने परम विद्वान श्रीगणेश के नाम का प्रस्ताव रखा।
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इस पर श्री गणेश जी द्वारा यह शर्त रखी गई कि वे कथा तब लिखेंगे, जब लेखन के समय उनकी लेखनी को विराम न करना पड़े। इससे पूर्व परम्परागत पद्धति से कंठस्थ किया जाता था परन्तु 'जय संहिता' जो 'महाभारत' कहलाई, प्रथम लिपिबद्घ कथा है अतः स्पष्ट है कि आर्य साहित्य में लेखन की परम्परा के प्रारम्भकर्ता पार्वतीपुत्र ही हैं।