अलग-अलग धर्म,संस्कृति,भाषा,संप्रदाय और प्रांत वाले देश में पर्व-त्योहार भी अलग-अलग होते हैं। कई पर्व-त्योहार ऐसे भी हैं जिन्हें पूरे देश में एक साथ मनाया जाता है लेकिन एक ही त्योहार को मनाने का अंदाज सबका अलग-अलग होता है।
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देश के अलग-अलग हिस्सों में क्षेत्र और जीवनशैली के हिसाब से त्योहारों के मनाने के तौर-तरीके में बदलाव नजर आता है। गणेश चतुर्थी के दिन हम सबके घर में बप्पा पधारने वाले हैं। गणेश चतुर्थी भारत में मनाए जाने वाले बडे़ त्योहारों में से एक माना जाता है। पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास के साथ यह मनाया जाता है।
मुंबई
यहां पर लालबाग के राजा बहुत प्रसिद्ध हैं। बॉलीवुड से सितारे यहां आकर भगवान गणेश के दर्शन करते हैं। यहां की प्रतिमा भारत के सभी गणेश मूर्तियों में सबसे लंबी होती है।
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पुणे-
पुणे में हर तरह के धर्म वाले लोग गणेशोत्सव को बिना किसी मत-भेद और धर्मभेद के एक साथ धूम-धाम से मनाते हैं।
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कर्नाटक-
यहां गणेश चतुर्थी को विनायका चतुर्थी बोलते हैं। यहां गणेश जी के मंदिरों में भारी भीड़ इकठ्ठा होती है,लोग आते हैं और पूजा करते हैं। यहां भी प्रसाद के रूप में मोदक दिया जाता है।
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छत्तीसगढ़-
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में गणेश चतुर्थी की काफी धूम देखने को मिलती है। यहां के लोग अपने घर और पंडालों को झालरों और फूलों से सजाते हैं। मोहरा मेला,बैलों की दौड़ और मीना बजार यहां के खास आकर्षण होते हैं।
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चेन्नई-
यहां गणेश चतुर्थी बडे़ पर्वो में से एक है। गणेश जी की बड़ी मूर्तियों के लिए यह विख्यात है। यहां आपको 40 फीट से भी बड़ी प्रतिमाएं देखने को मिल जाएंगी।
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आसाम- आसाम में गणेश जी की प्रतिमा बना कर मंदिर में प्रतिष्ठापित की जाती है और उनकी पूजा फूल,नारियल,गुड,मोदक,दूब और आरती से की जाती है। इसके अलावा यहां ब्लड डोनेशन कैंप,गरीबों को दान देने के लिए कैंप,फ्री मेडिकल चेकअप कैंप और नाटक का आयोजन होता है।
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गुजरात- गुजरात में अहमदाबाद,वडोदरा,सूरत और राजकोट आदि शहर,गणेशोत्सव पर्व मनाने के लिऐ जाने जाते हैं। गणेश चतुर्थी में भजन,कथा,नाच-गान और दूसरे अन्य पारंपरिक प्रतियोगिताएं होना आम बात है। राजकोट शहर में गणेश राजा की मूर्ति हर कोने में होती है।
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मध्यप्रदेश-
यहां कुछ शहरों में ईको फ्रेंडली गणेश भगवान की प्रतिमा की पूजा होती है। जल प्रदूषण को रोकने के लिए यहां आर्टिफीशियल सरोवर बनाए जाते हैं।
इस तरह हम देखते हैं कि हमारे रहन-सहन,जीवन,समाज और संस्कृति का असर कई रूप में सामने आता है। हमारी प्रकृति व संस्कृति परस्पर एक-दूसरे के पूरक हैं।