क्या गुजरती थी तितली पर?

- ख्याति तिवारी
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बात तब की है, जब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ती थी। मेरी एक खराब आदत थी। रंग-बिरंगी तितली को देखकर मन करता था उसे अपने पास रख लेने का। बस, फिर क्या था?

चुपके से जाकर फूल पर बैठी तितली को पकड़कर अपने पेंसिल बॉक्स में बंद कर देती और फिर अगले दिन स्कूल में साथियों को दिखाकर खूब वाहवाही बटोरती। मम्मी व दीदी मुझे ऐसा करने से मना करतीं, पर मैं किसी की न सुनती व मन की करती।

एक बार मम्मी मार्केट गईं। दीदी और मुझे घर पर छोड़कर। मैं खेलते-खेलते सो गई और जब उठी तो पास में दीदी को न पाकर बेचैन हो गई। दरवाजा खोलने की कोशिश की पर वह बाहर से बंद था। मैं बहुत डर गई और मेरी आँखों में आँसू आ गए।
  चुपके से जाकर फूल पर बैठी तितली को पकड़कर अपने पेंसिल बॉक्स में बंद कर देती और फिर अगले दिन स्कूल में साथियों को दिखाकर खूब वाहवाही बटोरती। मम्मी व दीदी मुझे ऐसा करने से मना करतीं, पर मैं किसी की न सुनती व मन की करती।      


करीब आधा घंटा बीतने के बाद दरवाजा खुला। दीदी सामने खड़ी थी। मुझे देखकर वह पूरा माजरा समझ गई और गले लगाते हुए बोली- आधे घंटे कैद में तुम्हारा यह हाल हो गया है और उस नन्ही-सी तितली के बारे में सोचो, जिसे तुम हमेशा पकड़कर रख लेती हो, उसकी तो जान ही चली जाती है।

अब मुझे अपनी गलती का अहसास हो चुका था। मैंने सबसे वादा किया कि अब कभी किसी तितली को कैद नहीं करूँगी।