दो महिलाओं ने मौन को मुखर बना दिया

१८८६ की चार मई को शाम ८.३० बजे शिकागो के हेमार्केट चौराहे पर एक ट्रक के ऊपर खड़े होकर करीब २५०० लोगों की भी़ड़ को संबोधित करते हुए एक स्थानीय अखबार के संपादक आगस्ट स्पाइज ने एक दिन पहले ह़ड़ताली मजदूरों पर चलाई गोली का विरोध किया। आखिर में एक मेथोडिस्ट उपदेशक सैमुअल फील्डेन ने भाषण दिया।

करीब १०.३० बजने को थे, फील्डेन का भाषण खत्म होने को ही था। सभा में मुश्किल से कुल जमा २०० लोग ही बचे थे। तभी अचानक १७८ हथियारबंद पुलिस वालों ने इस मासूम सी भीड़ पर हमला बोल दिया। इस बीच किसी ने डाइनामाइट बम फेंक दिया। बाद में पता चला कि कारखाना मालिकों के किसी गुर्गे ने यह हरकत की थी।

बदहवास पुलिस बल ने अंधाधुंध गोली चलाकर न सिर्फ चार मजदूरों को मार डाला, बल्कि खुद अपने ६ पुलिस वालों की जान ले ली। इसके बाद शुरू हुआ अमेरिकी इतिहास का सबसे बर्बर दमन और पूँजीवादी सत्ता का नंगा नाच। मजदूर नेताओं पर मुदकमे चलाए गए, जिनमें से चार को ११ नवंबर १८८७ को फाँसी पर लटका दिया गया।

इस निर्मम दमन और पूँजीवाद के अमानवीय चेहरे के खिलाफ दुनिया भर में विरोध हुआ और कुछ ही वर्ष में इसने पूँजीवाद के विरुद्ध मजदूर वर्ग के अंतरराष्ट्रीय दिवस "मई दिवस" का रूप धारण कर लिया।

मई दिवस को यह गरिमा प्रदान करने में अनगिनत लोगों का योगदान है। मगर शायद इनमें सबसे अधिक जीवंत योगदान उन दो वीरांगना महिलाओं का है, जिनके पति अल्बर्ट पार्सन्स और ऑगस्ट स्पाइज को ११ नवंबर १८८७ को सूली पर चढ़ा दिया गया था। वे इस शोक में अपने घरों में कैद नहीं हुईं, बल्कि उनकी शहादत और अपने साथ हुए अन्याय के संदेश को लेकर घूमीं। उन्होंने ऑगस्ट स्पाइज की अमर उक्ति "मेरी खामोशी मेरी आवाज से ज्यादा मुखर होगी" को वास्तविकता में तब्दील कर दिया। इन वीरांगनाओं के नाम नीना वानजांट स्पाइज और लूसी पार्सन्स थे।

लूसी पार्सन्स
लूसी १८५३ में काले, स्पैनिश और इंडियन पुरखों के परिवार में टैक्सास की जान्सन काउंटी में जन्मी थीं।

अल्बर्ट पार्सन्स को सजा सुनाए जाने के बाद लूसी ने पूरे अमेरिका में घूम-घूमकर हेमार्केट चौराहे की सच्चाई लोगों को बताई। बहुत कम लोग जानते हैं कि यह लूसी थी, जिसने "ह़ड़ताली धरने" के हथियार को खोजा था। १९५० में हुए औद्योगिक मजदूरों के विश्व सम्मेलन में बोलते हुए उसने कहा था- "भविष्य की ह़ड़तालों के बारे में मेरी धारणा, हड़ताल करके बाहर चले जाने और भूखों मरने की नहीं है।

बल्कि हमें हड़ताल करके अंदर ही धरना देकर बैठना चाहिए और उत्पादन से जुड़ी जरूरी संपत्तियों को अपने आधिपत्य में लेना चाहिए।" ५ मार्च १९४२ की दोपहर में लूसी के मकान में आग लग गई। वहअब तक अंधी हो चुकी थी, इसलिए बिल्डिंग से बाहर नहीं निकल सकी और आग में भस्म हो गई।

नीना वान जांट स्पाइज
आगस्ट स्पाइज के मुकदमे को सुनने अदालत पहुँची नीना वान बाद में न केवल उसकी दोस्त बन गई। हर सुनवाई के दौरान उपस्थित रहने वाली नीना को जेल अधिकारियों ने ऑगस्ट से मिलने से यह कह कर रोक दिया कि वह न उसकी रिश्तेदार है, न पत्नी। उसने ऑगस्ट से शादी की पेशकश की। तत्कालीन प्रशासन ने जब जेल में शादी की अनुमति नहीं दी, तो नीना ने बाहर ही एवजी विवाह करखुद के लिए आगस्ट की पत्नी का दर्जा हासिल कर लिया।

ाद के वर्षों में उसने लूसी पार्सन्स के साथ अनगिनत जलूसों में भाग लिया। अप्रैल १९३६ में उसकी मौत हो गई।

प्रस्तुति - बादल सरोज

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