ज्यादातर युवा अपना अधिक समय मोबाइल पर बात करते हुए बिताते हैं। आज मोबाइल युवाओं के लिए स्टाइल स्टेटमेंट और स्टेटस सिंबल बन गया है। लेकिन वे शायद नहीं जानते कि अधिक समय तक मोबाइल के उपयोग से शरीर पर इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है।
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युवाओं के हाथों में सुबह से शाम तक मोबाइल ही नजर आता है। हर समय घर हो या बाहर, पैदल चल रहे हों या फिर बाइक पर मोबाइल पर बातें खत्म ही नहीं होतीं। आज मोबाइल युवाओं के लिए स्टाइल स्टेटमेंट बन गया है तो दूसरी ओर स्टेटस सिंबल। ज्यादातर छात्रों के हाथों में नए से नया हैंडसेट देखने को मिल सकता है। लेकिन वे शायद इस बात से अनजान हैं कि अधिक समय तक मोबाइल के उपयोग से शरीर पर इसका दुष्प्रभाव पड़ रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक मोबाइल शरीर के विभिन्न अंगों पर घातक प्रभाव पहुंचा रहे हैं। प्रस्तुत है इस पर एक रिपोर्ट।
नींद में भी मोबाइल
डॉक्टर का कहना है कि जो पैसा और समय की टेंशन न लेकर मोबाइल का प्रयोग करते हैं वे अनिद्रा, थकान और चिड़चिड़ेपन का जल्दी शिकार हो जाते हैं। साथ ही शरीर की बॉयोलॉजिकल क्लॉक बिगड़ जाती है। वे कई तरह की परेशानियों से घिर जाते हैं। उन्हें नींद में भी अहसास होता है कि उनके फोन की घंटी बज रही है।
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सेहत पर मोबाइल का प्रभाव मानसिक तौर पर अस्पष्टता की स्थिति जैसे चीजें याद रखने में परेशानी, बोलते-बोलते शब्द भूल जाना, कहीं फोकस न कर पाना, किसी की कही गई बात को ठीक से ग्रहण कर पाना, गणितीय क्षमता का ह्रास, अपनी प्राथमिकताएं तय न कर पाना इत्यादि के रूप में सामने आ रहा है।
मोबाइल से मौत
कहा जाता है कि किसी भी चीज का हद से ज्यादा इस्तेमाल करना हानिकारक होता है। मोबाइल युवाओं की जीवनशैली का सिर्फ हिस्सा ही नहीं है बल्कि उनका ऐसा साथी है, जिसके बिना वे एक पल भी नहीं रह सकते। वे यात्रा करते समय या इंतजार में या खाली समय में मनोरंजन करना चाहते हैं और इसके लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं। लेकिन कीमत यदि सेहत है तो सोचना चाहिए।
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इसलिए भारतीय चिकित्सकों ने सचेत किया है कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल से होने वाली मौतें धूम्रपान से होने वाली मौतों की तुलना में ज्यादा हो सकती हैं।
याददाश्त में कमी
पहले बच्चों की जुबान पर कोई नंबर या पता होता था, अब उसी नंबर को दिमाग में रखने की जगह मोबाइल में फीड कर दिया जाता है। मनोचिकित्सक डॉ. अवंतिका श्रीवास्तव का मानना है कि मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों की कॉन्सन्ट्रेशन पावर पर तो प्रभाव डालता ही है, साथ ही उनकी याददाश्त पर भी असर करता है।
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अब बच्चों के दिमाग की अधिक कसरत ही नहीं हो पाती। हर पल कानों में मोबाइल के इयर फोन लगाकर रखने वाले इन बच्चों की याद रखने व सुनने की शक्ति भी प्रभावित हो रही है।
सुनने की क्षमता में कमी
ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉ. आरके शुक्ला का मानना है कि कान शरीर का संवेदनशील अंग है। आज ज्यादातर लोग मोबाइल वाइब्रेटर पर लगाकर रखते हैं जिसका दुष्प्रभाव कान के परदों पर पड़ता है। इतना ही नहीं लगातार बात करने की वजह से कान की हाई फ्रीक्वेंसी प्रभावित होती है जिससे लोगों को एस, टी, एफ और जेड जैसे शब्द जल्दी नहीं सुनाई देते हैं।
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इसके अलावा कानों में भारीपन, बंद होना, गरमाहट और झनझनाहट सुनाई देती है। समस्या ज्यादा गंभीर होने पर व्यक्ति को थोड़ी-थोड़ी देर पर घंटी की आवाज सुनाई देती है। युवाओं को लगातार बात करने की बजाय थोड़ी-थोड़ी देर के अंतराल पर बात करनी चाहिए।
कमजोर होता दिल
युवा मोबाइल की हर दूसरे दिन रिंग टोन बदल देते है। रिंग टोन की मस्त धुन सुनते युवा जाने-अनजाने में अपने दिल को कमजोर बना रहे हैं। जिस प्रकार ईसीजी के दौरान इलेक्ट्रिक मैग्नेटिक सिग्नल कुछ समय के लिए आपके हृदय की गति को नियंत्रित करता है, उसी तरह मोबाइल के रेडिएशन का असर भी आपकी धमनियों पर पड़ता है।
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हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ. आरएस शर्मा कहते हैं कि ऐसे युवा जो मोबाइल अपनी शर्ट की जेब में रखते हैं, उनमें इसका खतरा और अधिक बढ़ जाता है। हृदय की सबसे छोटी वाली आर्टरी इसके प्रभाव में जल्दी आती है और व्यक्ति की अचानक मौत हो सकती है।
दिमाग को क्षतिग्रस्त करतीं तरंगें
न्यूरोफिजिशियन डॉ. अनुपम साहनी बताते हैं कि मोबाइल पर अधिक बात करने की वजह से लगभग 15 प्रतिशत लोगों को मानसिक परेशानियों से जूझना पड़ता है।
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मोबाइल पर बहुत देर बात करते रहने से उनके कानों पर बुरा असर पड़ता है।