सकारात्मक सोचो, डिप्रेशन को भगाओ

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वॉशिंगटन। महात्मा गाँधी का सिद्धांत था, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो और बुरा मत देखो। इसी का पर्यायवाची है, सकारात्मक सोच यानी अच्छा सोचना। अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों ने गहन शोध के बाद यह दावा किया है कि यदि कोई व्यक्ति लगातार सकारात्मक सोच का अभ्यास करता है, तो वह उसके डिप्रेशन या अवसाद की स्थिति का एकमात्र इलाज हो सकता है।

अमेरिकन एकेडमी ऑफ फैमेली फिजिशियन का कहना है कि लोगों को नकारात्मक नहीं सोचना चाहिए। न ही विफलता के भय को लेकर चिंतित होते रहना चाहिए। इनकी बजाय हमेशा सकारात्मक सोच दिमाग में रखना चाहिए जो होगा अच्छा होगा। यदि कोई व्यक्ति सप्ताह में 4 से 6 दिन तक आधे-आधे घंटे का अभ्यास करता है, तो उसका सोच बदल सकता है। इन चिकित्सकों का यह भी कहना है कि उन कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए या वे काम करना चाहिए, जिसमें आपको फील गुड अहसास होता है।

योगाभ्यास के जरिए भी आप अपनी सोच को सकारात्मक बना सकते हैं। दरअसल शरीर में रसायन बनाने का जिम्मा लीवर का होता है और योग से नाड़ियाँ शुद्ध होती हैं, जो अनावश्यक रसायनों को बनने नहीं देतीं और व्यक्ति की सोच हमेशा सकारात्मक बनी रहती है।

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