तेरे मन के ओटले, विराजमान घमंड।
दे मूँछों पर ताव वह, पेल रहा है दंड।
मन की तंग कुटिया में, पले द्वेष का नाग।
अपने को ही काटता, बच गए तो भाग।
बीज कौन-से बो दिए, उग आया उन्माद।
अरे पंडितों, मुल्लाओं, दिया कौन सा खाद।
भूखों मरती झोपड़ी, चाट रहा तू खीर।
समझ लिया है देश को, दादा की जागीर।
चीखते हो चैन नहीं, शहर हुए हैं अलाव।
लौटते फिर क्यों नहीं, तुम पुरखों के गाँव।
देखा प्यार टूटते, कभी न टूटे बैर।
प्यार अपाहिज देखे, उगे बैर के पैर।
बेटा मेघ असाढ़ का, नई फसल की आस।
बाप बीती बरखा के, वन में फूले काँस।
तड़प-तड़प कर मर गया, उस बेटी का बाप।
भाई बनकर डँस गया, जब रिश्तों का साँप।
जन्मे जहाँ नहीं रहे, आँसू चीज कमाल।
ज्यों बाबुल बिटिया को, विदा करे ससुराल।
जीवन एक पहेली है, बूझ सके तो बूझ।
साँसों की हल्दी घाटी, तू राणा सा जूझ।