मेरी उदासी

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धूल के कण सूरज के प्रकाश में
उड़ रहे हैं
सुबह को छीन मेरा दानव
कहीं छिप गया है
अफसोस का प्रहरी
दिन भर चक्कर लगाता रहता है
मेरी उदासी
पेड़ों के नीचे पानी को खड़ा देख
भागती है पूर्व की ओर
सूरज के पिछले हिस्से में जा
छिप जाती है
मैं खुशी से ओत प्रोत हो उठती हूं।

- चम्पा वैद

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