प्रयागे माघ पर्यन्त त्रिवेणी संगमे शुभे। निवासः पुण्यशीलानां कल्पवासो हि कश्यते॥- (पद्मपुरण)
तीर्थराज प्रयाग के त्रिवेणी संगम पर माघ मासभर निवास करने से पुण्य फल प्त होता है। संगम तट पर एक माह की इस साधना को 'कल्पवास' कहा गया है।
कल्पवास के संदर्भ में माना गया है कि कल्पवासी को इच्छित फल तो मिलता ही है, उसे जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है। महाभारत में कहा गया है कि एक सौ साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने का जो फल है, माघ मास में कल्पवास करने भर से प्राप्त हो जाता है।
भगवान शिव ने त्रिपुर राक्षस के वध की क्षमता कल्पवास से ही प्राप्त की थी। ब्रह्मा के मानस पुत्र सनकादि ऋषियों को कल्पवास करने से आत्मदर्शन का लाभ हुआ।
कल्पवास की अवधि : कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि की है। बहुत से श्रद्धालु जीवनभर माघ मास गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम को समर्पित कर देते हैं। विधान के अनुसार एक रात्रि, तीन रात्रि, तीन महीना, छह महीना, छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर कल्पवास किया जा सकता है।
पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि आकाश तथा स्वर्ग में जो देवता हैं, वे भूमि पर जन्म लेने की इच्छा रखते हैं। वे चाहते हैं कि दुर्लभ मनुष्य का जन्म पाकर प्रयाग क्षेत्र में कल्पवास करें।
महाभारत के एक प्रसंग में मार्कंडेय धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं कि राजन्! प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है। जो भी व्यक्ति प्रयाग में एक महीना, इंद्रियों को वश में करके स्नान- ध्यान और कल्पवास करता है, उसके लिए स्वर्ग का स्थान सुरक्षित हो जाता है।
कल्पवास का विधान : प्रयाग क्षेत्र में निवास से पहले दिन में एक बार भोजन का अभ्यास बना लेना चाहिए। प्रयाग के लिए चलने से पूर्व गणेश पूजन अनिवार्य है। मार्ग में भी व्यसनों से बचे रहें।
त्रिवेणी तट पर पहुंच कर यह संकल्प लें कि कल्पवास की अवधि में बुरी संगत और कुवचनों का त्याग करेंगे, यहां कहा जाता है कि महीनेभर संयम का पालन करने से व्यक्ति की इच्छाशक्ति दृढ़ होती है और वह आगे का जीवन सदाचार से व्यतीत करता है।
कल्पवासी को चाहिए कि निम्नलिखित मंत्र पढ़कर अपने ऊपर गंगा जल छिड़के।
मंत्र : ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत पुण्डरीकांक्ष से बाह्याभ्यंतरः शुचि।
इस मंत्र से आचमन करें- ॐ केशवायनमः ॐ माधवाय नमः ॐ नाराणाय नमः का जाप करें।
हाथ में नारियल, पुष्प व द्रव्य लेकर यह मंत्र पढ़ें। इसके बाद आचमन करते हुए गणेश, गंगा, यमुना, सरस्वती, त्रिवेणी, माधव, वेणीमाधव और अक्षयवट की स्तुति करें।