प्रियंका चोपड़ा का बचपन

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मित्रो, त्योहारों के बीच आपकी पढ़ाई कैसी चल रही है? उम्मीद है पढ़ाई और मौजमस्ती दोनों ठीक ही चल रही होगी। आज मैं अपने बचपन की कुछ यादों को आपके साथ बाँट रही हूँ। दोस्तो, जब मैं छोटी थी तब बहुत शरारती थी। मैं अपनी पहली क्लास से ही मॉनीटर बनती रही।

मेरी टीचर मुझे मॉनीटर इसलिए बनाती थी ताकि मैं मस्ती कम करूँ, पर ऐसा होता नहीं था। मेरा जन्म जमशेदपुर में हुआ। यह मेरा ननिहाल है और मैंने अपनी स्कूल की पढ़ाई लखनऊ और बरेली के स्कूलों से पूरी की। इसके बाद जब मैं सातवीं में आई पापा को अमेरिका जाने का मौका मिला और इस तरह मेरे स्कूल का कुछ वक्त अमेरिका में भी बीता। यहाँ से लौटकर बाकी की स्कूली पढ़ाई बरेली में पूरी की।

मेरे पिता चूँकि आर्मी में डॉक्टर थे इसलिए मेरी पढ़ाई आर्मी स्कूलों में हुई। जीवन में अनुशासन का क्या महत्व है यह मैंने स्कूल और अपने पापा से ही सीखा है। अगर आप हर काम समय पर करते हैं तो उसका बहुत फायदा होता है। यह सीख मुझे बचपन से ही मिल गई थी और मैं इसका बहुत ध्‍यान रखती हूँ। दोस्तो, मैं अपने स्कूलों के दिनों में टीचर्स की चहेती स्टूडेंट्‍स रही हूँ। मैं हमेशा क्लास में 95 पर्सेंट से ज्यादा नंबर लाती थी और इसी खूबी के कारण मेरी टीचर्स मुझे बहुत पसंद करती थी। होनहार स्टूडेंट होने का यह फायदा तो होता ही है। दोस्तो, अपनी क्लास में जो स्टूडेंट अपना हर काम समय पर पूरा करता और टीचर्स की बात मानता है उसे टीचर्स से बहुत मदद भी मिलती है। और हाँ, बचपन से ही मुझे पढ़ने का शौक रहा है। आज भी मैं किताबें पढ़ने का समय निकाल लेती हूँ।

दोस्तो, अमेरिका में जिन दो स्कूलों में मुझे पढ़ने का मौका मिला उनमें से एक तो न्यूटन शहर का साउथ हाईस्कूल था। यहाँ की बहुत सी यादें हैं। जब मैं अमेरिका में थी तो मेरी तीन बहुत अच्छी सहेलियाँ बन गई थीं। हम चारों अलग-अलग देशों से थीं। एक अफगानिस्तान से, एक चीन से, एक अफ्रीका से और मैं भारत से। हम चारों की आपस में खूब पटती थी।

अमेरिका में मैं अपनी आंटी के साथ रहती थी और वे ही तय करती थीं कि मैं क्या पहनूँगी। मुझे फैशनेबल कपड़े पहनने की मनाही थी। इस तरह की मनाही बाकी तीनों सहेलियों पर भी थी। जिस स्कूल में मैं थी वहाँ पर अमेरिका और अश्वेत स्टूडेंट्‍स का अलग-अलग ग्रुप होता था पर हमारी दोस्ती एक अ‍मेरिकन लड़की से हो गई थी और वह हमें वहाँ की लेटेस्ट फैशन के बारे में बताती थी।

वह हमें नई फैशन की ड्रेसेस भी लाकर देती। जब हमें कहीं बाहर घूमने जाना होता था तो हम उस सहेली की दी हुई ड्रेस पहन लेते और फिर जब घूमकर आने के बाद घर जाने का समय होता तो अपनी पुरानी ड्रेस में आ जाते। उन दिनों अमेरिका में घूमने की भी बात निराली थी।

इन दिनों के आधार पर ही मैं कह सकती हूँ कि स्कूल और कॉलेज के दिनों से अच्छे दिन जिंदगी में दूसरे नहीं होते। मैं जिस किसी स्कूल में रही हमेशा सभी के बीच जाना-पहचाना नाम रही क्योंकि मैं पढ़ाई के अलावा स्कूल में होने वाली हर गतिविधि में भाग लेती थी। पढ़ाई के अलावा अपने शौक से ऐसी चीजें चुनना जरूरी है ताकि हमारा व्यक्तित्व निखर सके। मेरे बचपन की बहुत सी शैतानियाँ मेरे भाई सिद्धार्थ के साथ भी जुड़ी है। बचपन में मैं उसे भी बहुत परेशान करती थी। वह छोटा था और इसलिए मेरी हर बात मानता था। भाई-बहन का रिश्ता तो ऐसा ही होता है।

दोस्तो, मैंने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई के जय हिंद कॉलेज में दाखिला लिया था पर फिर मिस इंडिया वर्ल्ड और मिस वल्र्ड कॉम्पीटिशन में भाग लिया और इन दिनों कॉम्पीटिशन में विजेता भी बनी। पर पढ़ाई छूट गई। पढ़ाई छूटने का मुझे ज्यादा दुख नहीं हुआ क्योंकि मैंने स्कूल के दिनों में खूब मन लगाकर पढ़ाई की थी। इन दिनों मैं एक ऐसे संगठन के साथ भी जुड़ी हूँ जो लड़कियों की पढ़ाई पर जोर देता है। हम सभी को अपने कामों के अलावा इस तरह के कामों के लिए भी समय निकालना चाहिए।

दोस्तो, जब मैंने मिस वर्ल्ड कॉम्पीटिशन जीती उसके बाद तो फिल्मों के ऑफर मिलने लगे और मैं अभिनेत्री बन गई। मैंने बचपन में कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे अभिनेत्री बनना है। पर मौके मिलते गए और मैं अपनी रुचि के अनुसार आगे बढ़ती गई। याद रखना अपनी रुचि है तो तुम्हें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है।

और हाँ, यह बचपन के दिनों की बातें और शै‍तानियों से भी कुछ न कुछ सीखते रहना। यह इन्हीं दिनों का असर है कि मुझे कॉमेडी फिल्में और सीन बहुत अच्छे लगते हैं। तो आप भी अपनी रुचियों को पहचानकर आगे बढ़ते जाना।

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