'संगीत बचपन से मेरे साथ रहा'

कविता कृष्णमूर्ति
जन्मदिन : 25 जनवरी

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प्यारे साथियो, मैं आपसे संगीत और अपने बचपन की कुछ बातें करने जा रही हूँ। मुझे यह देखकर बहुत अच्छा लगता है कि इन दिनों छोटे-छोटे बच्चे सुरीले गीत गा रहे है। कई बार तो बच्चों को देखकर मुझे लगता है कि इतनी सी उम्र में क्या खूब गाना आ गया है इन्हें। यह अच्छी बात है कि इदिनों बहुत से बच्चों का संगीत की तररुझान है। कभी मेरी भी संगीत की शिक्षा आपकी जितनी उम्र में ही शुरू हुई थी। मैंने अपनचाची से संगीत सीखना शुरू किया था। वे मुझे बड़े प्यार से संगीत सिखाती थीं। उनका मानना था कि मैं एक ‍दिन संगीत की दुनिया में जरूर नाम कमाऊँगी। चाची के साथ ही मैंने गुरुजी बलराम पुरी से भी संगीत सीखा। बचपन से ही मैं गंभीर और शांत लड़की थी। मेरा शौक संगीत ही था और मुझे संगीत सीखना ही ज्यादा अच्छा लगता था।

साथियो, मेरा जन्म दिल्ली में हुआ। बचपन से ही संगीत में रुचि के साथ मैं संगीत की प्रतियोगिताओं में भी उत्साह से हिस्सा लेने लगी थी। मुझे याद है कि 8 साल की उम्र में संगीत स्पर्धा में गोल्ड मैडल जीता था। इस मैडल को जीतने पर मुझे बहुत खुशी हुई थी।

इसके बाद मैंने शास्त्रीय संगीत की बहुत सी स्पर्धाओं में हिस्सा लिया और जीतीं भी। आप सभी से मेरा यही कहना है कि टीवी पर जो टैलेंट हंट शो और म्यूजिक कॉम्पीटिशन होते हैं उनमें भाग जरूर लेना चाहिए।

इस तरह के कॉम्पीटिशन से ही आपमें निखार आएगा। मेरा मानना है कि ये सभी प्रतियोगिताएँ बच्चों के लिए एक अच्‍छा मंच है जहाँ वे अपनी कला का प्रदर्शन कर सकते हैं। इन प्रतियोगिताओं में बच्चों को बड़े संगीतकारों और अभिनेताओं से मिलने का मौका मिलता है, जो उनका हौसला भी बढ़ाते हैं। इस तरह उन्हें सही दिशा मिलती है। कॉम्पीटिशन में जीत मिले या हार तो इससे घबराना नहीं चाहिए।

जीत या हार तो हमेशा लगी रहती है। हारने पर रोना नहीं चाहिए। हारने पर रोने वाले बच्चे मुझे अच्छे नहीं लगते। मेरा आप सभी से यही कहना है कि हमारी नजर सिर्फ अच्छा काम करने पर होना चाहिए, जीत-हार तो आती-जाती रहती है।

साथियो, मैं बचपन में भारतीय विदेश सेवा में भी जाने के बारे में सोचती थी पर संगीत से मेरा लगाव ज्यादा गहरा था तो मैं इसी दिशा में आगे बढ़ी। अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं 14 साल की थी। तब मुंबई आ गई। मैंने यह तय कर लिया था कि मुझे अच्छी गायिका बनना है। दोस्तों इसके बाद मुंबई में मैं संगीत सीखती रही।

कठिन काम मिलने पर इस तरह सोचना चाहिए कि आप वह काम कर सकते हैं तभी तो वह काम आपको मिला है। इसीलिए कठिन काम से घबराना नहीं चाहिए।
यहाँ मैंने सेंट जेवियर कॉलेज से आगे की पढ़ाई की। कॉलेज के दौरान मैं सभी संगीत स्पर्धाओं में हिस्सा लेती थी। पढ़ाई के साथ संगीत की दुनिया में मेरा सफर आगे बढ़ता रहा। मुझे गुणीजन मिलते गए और मैं आगे बढ़ती गई। अगर आप मेहनत करते हैं तो ईश्वर आपके लिए रास्ता बनाता है। संगीत मेरे लिए ईश्वर की साधना करने का जरिया है।

साथियो, मेरा आपसे कहना है कि इन दिनों आप पढ़ाई मन लगाकर करो। साथ ही अगर आपका कोई शौक है तो उसे भी पूरा समय दो। काम कोई भी हो आपको पूरा ध्यान लगाना चाहिए। बचपन के दिन हमारे लिए अच्छे कामों की तैयारी के दिन होते हैं। इन दिनों में हम जो कुछ भी सीखते हैं वह पूरी‍ जिंदगी हमारे काम आता है।

बचपन की सीखी बातें कभी बेकार नहीं जातीं। मैंने अपने बचपन से ही संगीत सीखने की तरफ अपना ध्यान लगाया और उसी का परिणाम है कि मैं एक गायिका बन पाई। गायिका बनने के लिए बचपन के दिनों में मैं कभी भी रियाज करने से नहीं घबराती थी। कभी-कभी ज्यादा देर तक भी रियाज करना पड़ता था। तब लगता था कि यह कठिन काम है, पर कठिन काम करते रहना चाहिए। कठिन काम मिलने पर इस तरह सोचना चाहिए कि आप वह काम कर सकते हैं तभी तो वह काम आपको मिला है। इसीलिए कठिन काम से घबराना नहीं चाहिए। कठिन काम से याद आया कि अब जैसे-जैसे परीक्षाएँ पास आ रही हैं बहुत से बच्चों को गणित से डर लगने लगा होगा पर अभी से प्रैक्टिस करना शुरू करोगे तो कोई सवाल परीक्षा हॉल में मुश्किल नहीं लगेगा। तो ऑल द बेस्ट।

आपकी दोस्त
कविता कृष्णमूर्ति

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