- कृति श्रीवास्तव (म.प्र. भोपाल)
कितनी सुंदर, कितनी प्यारी,
हिंदी हर भाषा से न्यारी।
क्यों हम अंग्रेजी को अपनाएँ,
गैरों को क्यों शीष झुकाएँ?
अपनी हिंदी न्यारी-प्यारी,
असंख्य शब्दों की फुलवारी।
हिंदी सीखो, हिंदी बोलो,
हिंदी को हर दिल में घोलो।
अपनी भाषा वैभवशाली,
फिर हम क्यों बने भिखारी।
कितनी सुंदर, कितनी प्यारी,
हिंदी हर भाषा से न्यारी।