सीख-चिड़ियाघर से

- एम.के. सांघी

शेर -
जंगल में अपनी ताकत का
मुझको था बड़ा ही घमंड
फँस गया एक दिन जाल में
पिंजरे में होना पड़ा बंद।

बंदर -
देखो हम उछलते-कूदते
बच्चों तुम हँसते रहते
हम भी शायद आदमी होते
सदा ना हम पेड़ पर होते।

भालू -
चोरी, चुराने की आदत
शहद खाए बिना मेहनत
सजा मिली है मुझे देखो
बंद पड़ा हूँ पिंजरे अब।

कबूतर -
खूब जनसंख्या बढ़ाने की
जो हम नहीं करते नादानी
यूँ नहीं झगड़ना पड़ता
पाने के लिए दाना-पानी।

उल्लू -
रातों में यदि जागोगे देर तक
तो सुबह जल्दी नहीं उठ पाओगे
बनोगे मुझ सरीखे उल्लू
बुद्धिहीन रह जाओगे।

हाथी -
खूब ज्यादा खाने का
पाया हमनें यह नतीजा
हमारे जैसा भारी-भरकम
जानवर नहीं जगत में दूजा।

खरगोश -
खतरा सामने होने पर
तेज रफ्तार बचाती है
बेवजह की तेज रफ्तार
खतरों को स्वयं बुलाती है।

भेड़िया-
बुरे काम बुरे होते हैं
चाहे करो झुंड के साथ
साथियों के बहकावे में
गलत ना करना कोई काम।

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