कुछ समय पहले तक लोग कठपुतली कला को केवल मनोरंजन का एक साधन मानते थे परंतु अब यह कला करियर का रूप लेती जा रही है। अब यह मनमोहक कला भारत के साथ-साथ विदेशों में भी लोकप्रिय होती जा रही है। कठपुतली का खेल दिखाने वाले को कठपुतली कलाकार या पपेटियर कहते हैं। वर्तमान में कठपुतली शो टेलीविजन एवं फिल्मों में काफी लोकप्रिय हो रहे हैं जैसे एनडीटीवी का पपेट शो 'गुस्ताखी माफ' तथा स्टार वन के लाफ्टर शो का रेंचो आदि।
गौरतलब है कि कठपुतली कला के साक्ष्य भारतीय सभ्यता के प्रारंभिक दौर में भी मिलते हैं। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में यह मनोरंजन का स्रोत हुआ करती थी, साथ ही, यह समाज के रीति-रिवाजों का भी हिस्सा थी। आधुनिक समय में कठपुतली कला ने समय की आवश्यकता के अनुसार एक नया रूप धारण कर लिया है और अब यह ज्ञान तथा शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
कठपुतली नचाना दरअसल एक कला है जिसमें निष्क्रिय कठपुतली को कलाकार द्वारा सक्रियता प्रदान की जाती है तो यह भ्रम उत्पन्न होता है कि वह जीवित है। लोगों को आज शिक्षा देने में कठपुतली कला के महत्व को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता है। कठपुतली कला चाहे परंपरागत हो या आधुनिक इस कला का उपयोग जन शिक्षा के क्षेत्र में जागरूकता लाने के लिए किया जाता है। कठपुतली कला जटिल से जटिल विषय को आसानी से समझाने में सबसे उपयोगी माध्यम साबित हो रही है क्योंकि यह जीवन की समस्याओं को बेहतर ढंग से उजागर कर सकती है।
हमारे देश में प्रारंभ से ही कठपुतली कला में परंपरागत तथा आधुनिक विषयों, लोककथाओं तथा पौराणिक कथाओं का समावेश हुआ है, परंतु ज्यादातर इनमें परंपरा की झलक देखने को मिलती है, क्योंकि वे परिवार जो कठपुतलियों का नाच करते हैं वे पुरानी परंपराओं से अब तक जुड़े हुए हैं, परंतु आधुनिक कठपुतली नाच को नए विषय, धरातल और परिप्रेक्ष्य में देखा जाने लगा है। आज भारतीय कठपुतली कला की विदेशों में धूम मची हुई है। कठपुतली कला में करियर बनाने वालों के लिए देश ही नहीं, विदेशों में भी रोजगार की उजली संभावनाएं हैं।
वर्तमान समय में विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थान कठपुतली कला के विकास के लिए व्यक्तिगत रूप से अनुदान प्रदान करते हैं। कठपुतली कला का ज्ञान रखने वालों को राज्य एवं केंद्र सरकार भी अनुदान प्रदान करती है। कठपुतली कला में पहले करियर बनाना थोड़ा कठिन माना जाता था क्योंकि पहले कठपुतली समूह ज्यादा पैसा नहीं कमा पाते थे इसलिए युवा इस क्षेत्र में करियर की संभावनाएं कम देखते थे परंतु सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों के अनुदान एवं प्रोत्साहन तथा कठपुतली के शो की भारी मांग के कारण इस क्षेत्र में अब धन की कोई कमी नहीं रह गई है। अब इस क्षेत्र में आया नया व्यक्ति अपने नए समूह के साथ आ सकता है जिसे शुरू से ही काम एवं अनुदान प्राप्त होने लगता है।
कठपुतली कलाकार के बारे में यदि आपकी यह धारणा है कि वे सड़क पर या नुक्कड़ पर कठपुतली का नाच दिखाते हैं तो अपनी इस धारणा को आप बदल दीजिए। वर्तमान समय एवं परिस्थिति को देखते हुए कठपुतली कला के क्षेत्र में भविष्य की संभावनाओं के प्रति आश्वस्त हुआ जा सकता है। अब टेलीविजन थिएटर और अन्य माध्यम इसके कार्यक्षेत्र में शामिल हो गए हैं। जिससे इस क्षेत्र में बहुत पैसा आ गया है।
अन्य करियर क्षेत्रों की तरह यह भी उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपने काम के प्रति कितना समर्पित है। भारत में कठपुतली कला के प्रशिक्षण के लिए किसी फॉर्मल डिग्री की आवश्यकता नहीं है। मिमिक्री, स्कल्पचर, ड्रामा और डांस आदि में रुचि रखने वाले कठपुतली कला को कुछ ही महीनों में आसानी से सीख सकते हैं। भारत में कठपुतली कला को अच्छे गुरुओं से भी सीखा जा सकता है।
यहां से करें कोर्स :
1. संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली।
2. भारतीय लोक कला मंडल, उदयपुर।
3. महिषत कवि, अहमदाबाद।
4. यूनियन इंटरनेशनल डी ला मेरियनेट (यूनिमा), कोलकाता।