एचआईवी पॉजिटिव कैदियों की संख्या में होती वृद्धि को देखते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा है कि कैदियों को एकांत में अपनी पत्नियों से यौन संबंध बनाने की अनुमति देने की संभावनाओं को तलाशा जाए।
एचआईवी पॉजिटिव कैदियों को इलाज की सुविधा के बारे में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस पीबी मजुमदार और जस्टिस आरजी केतकर ने महाराष्ट्र सरकार को यह निर्देश दिया है। इसमें दो से तीन साल की सजा पाने वाले कैदियों को हर महीने बिल्कुल एकांत में अपनी पत्नी से मिलने की अनुमति देने की संभावना तलाशने को कहा गया है।
जजों ने यह निर्देश इसलिए दिया है कि क्योंकि वे मानते हैं कि एचआईवी के मामले असुरक्षित और अप्राकृतिक यौन संबंधों के कारण बढ़ रहे हैं। इस मामले में वकील आनंद ग्रोवर ने कहा-हमें यह बात अच्छी लगे या न लगे, लेकिन जेल में यौन संबंध बनाए जाते हैं। यह ऐसा मुद्दा है, जिसे हर कोई दबाना चाहता है। अदालत की तरफ से पूछे गए सवाल पर ग्रोवर ने कहा कि कई यूरोपीय और एशियाई देशों में कैदियों को वैवाहिक अधिकारों की अनुमित दी जा चुकी है।
जस्टिस मजुमदार ने कहा-शारीरिक जरूरतें हो सकती हैं तो देखिए कि क्या कैदियों को उनकी पत्नियों के साथ एक या दो दिन के लिए कोई अलग जगह दी जा सकती है। सरकार जेलों में एड्स को नियंत्रित करने के लिए करोड़ो रुपए खर्च कर रही है। इसकी बजाय क्यों न ऐहतियाती कदम उठाए जाएँ। अदालत ने सरकार को नासिक, पुणे, नागपुर और थाणे में 20 जनवरी तक एचआईवी टेस्ट के लिए प्रयोगशाला बनाने का भी निर्देश दिया है।