रंग देखकर पहचान पत्र मांगने पर रोक

शुक्रवार, 2 नवंबर 2012 (16:55 IST)
जर्मनी की एक अदालत ने पुलिस से कहा है रंग के आधार पर किसी व्यक्ति से पहचान पत्र मांगना सही नहीं है। कोर्ट के फैसले से पुलिस संतुष्ट नहीं है। वहीं मानवाधिकार संगठनों ने अदालत के फैसले की तारीफ की है।

दिसंबर 2010 में एक अश्वेत जर्मन छात्र ट्रेन से सफर कर रहा था। इसी दौरान छात्र का सामना दो पुलिसकर्मियों से हुआ। पुलिस वालों ने छात्र से पहचान पत्र मांगा। छात्र को लगा कि रंग की वजह से उससे पहचान पत्र मांगा गया। उसने पहचान पत्र देने से इनकार किया और पुलिस पर 'नाजी प्रक्रिया' जैसी कार्रवाई का आरोप लगाया। पुलिस ने छात्र पर दुर्व्यवहार की धारा लगा दी।

मामला अदालत पहुंचा। छात्र ने पुलिस पर भेदभाव का आरोप लगाया। मार्च में कोब्लेंस की प्रशासनिक अदालत ने पुलिस के रुख को सही ठहराया। कहा कि अवैध प्रवासियों को पकड़ने के लिए पुलिस हुलिए के आधार पर मौके पर तलाशी ले सकती है।

अब कोब्लेंस के अपील कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया है। उच्च अदालत में एक पुलिसकर्मी ने माना कि युवक का रंग अश्वेत था, इसीलिए वह उसके दस्तावेजों की जांच करना चाहते थे। पुलिसकर्मी ने यह भी कहा कि यह सामान्य बात है।

बड़ी प्रशासनिक अदालत के जजों के मुताबिक पहचान की जांच करने में रंग निर्णायक पहलू नहीं होना चाहिए। इसकी अवेहलना करना जर्मनी के संविधान में भेदभाव पर प्रतिबंध के अनुच्छेद तीन का उल्लंघन है।

अनुच्छेद तीन कहता है, 'लिंग, वंश, नस्ल, भाषा, घर और मूल, विश्वास या धर्म या राजनीतिक विचारों के आधार पर किसी भी व्यक्ति को लाभ या नुकसान नहीं पहुंचाया जाया जाए।'

हैम्बर्ग में रह रहे अफ्रीकी मूल के अश्वेत लोगों का भी ऐसा ही आरोप है। वे कहते हैं कि रंग की वजह से पुलिस उनकी जांच ज्यादा करती है। वहां पुलिस ड्रग्स का धंधा करने वालों से जूझ रही है।

कोब्लेंस की उच्च प्रशासनिक अदालत के फैसले पर पुलिस यूनियनों की राय बंटी है। जर्मन पुलिस यूनियन के प्रमुख राइनर वेन्ट कहते हैं, 'कानून के मसले पर अदालत खुशमिजाजी का एहसास करते हुए आगे बढ़ती है, लेकिन वे यह तय नहीं करते कि क्या फैसला व्यावहारिक जरूरतों को पूरा करता है।'

एक और प्रमुख संघ यूनियन ऑफ जर्मन पुलिस भी कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं। संघ के प्रवक्ता योजेफ शॉयरिंग कहते हैं, 'फैसले में जर्मन पुलिस के बड़े हिस्से का दृष्टिकोण नहीं दिखता और इससे ऐसी छवि बनती है जो जर्मन पुलिस के लिए साफ नहीं है।'

शॉयरिंग कहते हैं कि कोर्ट का फैसला उन्हें मंजूर है लेकिन कुछ सवाल भी करते हैं। उनके मुताबिक ठोस वजह होने पर पहचान की जांच की जानी चाहिए। उन्होंने माना कि जो कुछ अश्वेत छात्र के साथ हुआ वैसे वाकये नहीं होते हैं।'

मानवाधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं ने अदालत के फैसले का स्वागत किया है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने उच्च अदालत के फैसला पलटने पर खुशी जाहिर की।

एमनेस्टी इंटरनेशनल के पुलिस और मानवाधिकार विशेषज्ञ अलेक्जांडर बॉश कहते हैं, 'हम फैसले का स्वागत करते हैं, पहचान की जांच में होने वाले भेदभाव के लिहाज से यह अहम संकेत है।' बॉश का आरोप है कि हाल के वर्षों में पहचान की जांच करने में भेदभाव के मामले बढ़े हैं।

रिपोर्ट: रेचल गेसाट/ओएसजे
संपादन: महेश झा

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