चिंता किस बात की, मैं हूँ ना...

विशाल मिश्र

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जलज एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत है। मध्य‍मवर्गीय परिवार का सदस्य है। माता-पिता के अलावा उसका एछोटा भाई और एक बहन है। उसका वेतन साढ़े पाँच हजार रुपए है लेकिन उसने कभी यह बात अपने परिजनों को भी नहीं बताई। समय-समय पर अपने घर के सदस्यों के लिए गिफ्‍ट वगैरह लाना उसे अच्छा लगता है जिससे वह कोई समझौता नहीं करता। खुद पर ज्यादा खर्च करना उसे पसंद नहीं। भाई-बहन उसके लिए कुछ गिफ्‍ट बतौर लाकर दे देते हैं वह सामान खुशी से उपयोग करता है।

इन खर्चों के अलावा कुछ सेविंग भी कर लेता है। सोचता है शादी के बाद बीवी के काम आएँगे और उसे किसी चीज के लिए न नहीं कहना पड़ेगा। अच्छा सा घर देखकर शादी हो गई। हनीमून मनाने के बाद फिर से जॉब पर आ गए और अपना परिवार ठीक तरह से देखने लगे।

बीवी अनन्या ने भी उनकी सेलेरी जानने में ज्यादा रूचि नहीं दिखाई। लेकिन कोई भी चीज की माँग करती 1-2 दिनों में बाकायदा उसके हाथों में होती और घर की जरूरतों के लिए भी उसे पैसे देना नहीं भूलता। किसवस्तकहनमेसंकोच भी करती तो उसे बोलकर समझा देता चिंता क्यों करती हो, मैं हूँ ना। बीवी को मायके में कभी नीचा नहीं देखना पड़े इसके लिए किसी भी समारोह आदि के मौके पर वहाँ की भी जिम्मेदारियों को समझकर अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रहने देता।

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शादी की दूसरी वर्षगाँठ आते-आते जलका बैंक अकाउंट तो निल हो गया। अब किसी सामान की जरूरत पड़ती तो वदोस्तों से थोड़ा-बहुत उधार लेकर काम चला लेता था लेकिन अनन्या को भी कानों-कान इसकी खबर नहीं लगने देता और समय से दोस्तों का रुपया सेलेरी मिलने पर लौटा भी देता था।

खरीदारी के काम से आते-जाते क्रेडिट कार्ड के बारे में पता चला। बैंकों से जानकारी लेने के बाद बनवा लिए। अब बजाय दोस्तों के पास जाने के वह इन्हीं कार्डों से खरीददारी कर लेता और समय सीमा पर उनका पैसा भी चुका देता।

तीसरी वर्षगाँठ पर भी उसने बीवी को कीमती साड़ी समेत ढेर सारे तोहफे भी दिए। दो-तीन महीने बाद उसके ‍यहाँ सुंदर से बेटे ने जन्म लिया। उसकी भी प‍रवरिश में किसी तरह की कमी नहीं रहने दी। बढ़िया खिलौनों से लेकर उसकी ड्रेस, इलाज आदि सभी बात का ख्याल रखता। स्वाभाविक भी है आखिर पहला बेटा था। लेकिन अब बीवी-बच्चे दोनों के लिए उसने अपने रोजमर्रा के जो खर्च थे उनमें और कमी कर ली थी।

  लेकिन अनन्या अब दिन बदल चुके हैं। मुझ पर लगभग बैंकों का 1 लाख रुपए का कर्ज भी है। तो आप चिंता क्यों करते हैं, मैं हूँ ना। मेरे पास 35-40 हजार रुपए रखे हैं। लेकिन तुम्हारे पास यह रुपए कहाँ से आए।      
अनन्या कहती आपके कपड़े लाने हैं, जूते और घड़ी आदि खरीदी समय हो गया तो अभी ठीक हैं कहकर टाल देता था। आर्थिक मंदी के चलते कंपनी ने उसकी सेलेरी में 10-15 फीसदी की कटौती कर दी और उसके 75 हजार रुपए जिस क्षेत्रीय बैंक में जमा थे वह डूब गए और लोगों की जमा राशि भी अधर में लटक गई।

एक साथ लगे इन दो आर्थिक झटकों ने उसे हिलाकर रख दिया। लेकिन उसने इसका अहसास घर पर किसी को नहीं होने दिया। सैलेरी में हुई कटौती की कमी को पूरा करने के लिए उसने कर्ज का सहारा लेने से परहेज नहीं किया। लेकिन मंदी के असर ने उसे भी जकड़ लिया और बेटे राहुल का बढ़िया से स्कूल में एडमिशन भी उसे इसी सत्र में कराना था।

राहुल के एडमिशन को लेकर थोड़ा परेशान रहने लगा। एक दिन बहुत जिद करने पर उसने अनन्या को बैंक में उसकी डूबी राशि और वेतन में कटौती के बारे में बताया। अनन्या बोली राहुल के एडमिशन में कितना खर्च आएगा। 25 से 30 हजार जलज बोला। बस इतनी सी बात हम कल ही जाकर यह फीस जमा करा देंगे।

लेकिन अनन्या अब दिन बदल चुके हैं। मुझ पर लगभग बैंकों का 1 लाख रुपए का कर्ज भी है। तो आप चिंता क्यों करते हैं, मैं हूँ ना। मेरे पास 35-40 हजार रुपए रखे हैं। लेकिन तुम्हारे पास यह रुपए कहाँ से आए। यह सब आपके ही पैसे हैं जो मैंने बुरे वक्त के लिए बचाकर रखे हैं। क्योंकि मेरी जरूरत का सामान तो सब आप ही ला देते हैं तो पैसे का मैं क्या करती।

परंतु आपको मुझसे एक वादा करना पड़ेगा। अब मुझ पर होने वाली फिजूलखर्ची को बंद करो क्योंकि अब हमें राहुल के आगे के एजुकेशन के लिए भी पैसों की व्यवस्था करनी चाहिए। मुझे जो भी जरूरी सामान लगेगा मैं खुद बता दूँगी। इसके बाद दोनों बजट बनाकर अच्छे से घर चलाने लगे और उनका कर्ज भी उतर गया। क्योंकि अब उन्हें पता लगा कि दो-ढाई हजार रुपए उनके प्रतिमाह फिजूल ही खर्च हो रहे थे। जलज इतना अच्‍छा जीवनसाथी पाकर खुश था जोकि अपने पति की परेशानियों को बिना कहे भी समझ गई थी और उनकी गृहस्थी की गाड़ी फिर पटरी पर आ गई थी।