गुजरात के पंचमहल जिले में स्थित पावागढ़ का महाकाली मंदिर पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक तथा पर्यटन के दृष्टि से प्रदेश के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है।
पावागढ़ की पहचान की मुख्यत: उसके महाकाली मंदिर के लिए है। पावागढ़ में महाकाली मंदिर एक शक्तिपीठ है और हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण स्थल है।
इतिहास के पन्नों में पावागढ़ का नाम महान संगीतज्ञ तानसेन के समकालीन संगीतकार बैजू बावरा के संदर्भ में आया है। बैजू जैसे महान संगीतकार का जन्म इसी पवित्र भूमि में हुआ था।
पहाड़ियों पर बसा महाकाली का यह मंदिर 550 मीटर (लगभग एक हजार पाँच सौ तेईस फुट) की ऊँचाई पर पावागढ़ की पहाड़ियों के बीच स्थित है। मंदिर तक पहुँचने के लिए आजकल रोपवे की सुविधा बना दी गई है। मंदिर तक पहुँचने के लिए लगभग 250 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती है।
नवरात्र के दौरान इस मंदिर का महत्व बढ़ जाता है। इन दिनों अधिक से अधिक लोग वहाँ पहुँचकर इस सिद्धपीठ में माता के दर्शन करते हैं।
पावागढ़ पहाड़ियों की तलहटी में चंपानेर नगरी है, जिसे महाराज वनराज चावड़ा ने अपने बुद्धिमान मंत्री चंपा के नाम पर बसाया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया है।
गुजरात सरकार ने पावागढ़ को इसकी प्राकृतिक सुंदरता और साफ-सुथरे वातावरण के चलते एक पहाड़ी रिसॉर्ट के तौर पर विकसित किया है।
पावागढ़ पहाड़ी की शुरुआत चंपानेर से होती है। एक हजार 471 फुट की ऊँचाई पर माची हवेली स्थित है। मंदिर तक जाने के लिए माची हवेली से रोपवे सुविधा है। यहाँ से मंदिर तक पहुँचने के लिए 250 सीढ़ियाँ भी चढ़नी पड़ती हैं।
इस मंदिर का धार्मिक महत्व भी है। मंदिर की छत पर मुस्लिमों का एक पवित्र स्थल है। इस पवित्र स्थान पर अदानशाह पीर की दरगाह स्थित है। यहाँ बड़ी संख्या में मुस्लिम श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।
इसके ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व को देखते हुए सरकार ने चार करोड़ 75 लाख रुपए की एक परियोजना के तहत महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है। पंचमहल जिले का द्वार कहे जाने वाले पावागढ़ में मुख्य रूप से आदिवासी और पिछड़े वर्गों लोग रहते हैं। यह क्षेत्र पिछड़ा हुआ है।
सरकारी सूत्र बताते हैं कि सरकार ने इस क्षेत्र के विकास के लिए विभिन्न योजनाओं को मंजूरी दी है। यह इन्हीं योजनाओं का परिणाम है कि पावागढ़ के निकट स्थित हलोल और कलोल जिला एक औद्योगिक शहर बनकर उभरा है। हलोल में एक फिल्म स्टूडियो भी स्थापित किया गया है।
सूत्र बताते हैं कि विकास की ओर अग्रसर पहाड़ी क्षेत्र होने के नाते यह बेहतरीन पर्यटन स्थल तथा लोकेशन उपलब्ध कराता है। पूर्वी छोर पर रंगपुर आश्रम स्थित है। इसे हरिवल्लभ पारिख चलाते हैं। यह आश्रम आदिवासी के कल्याण के लिए काम करता है।
पावागढ़ का अपना पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है। यह मंदिर अयोध्या के राजा भगवान श्री रामचंद्रजी के समय का है। प्रसिद्ध यूनानी भूगोलशास्त्री तोलेमी ने इस मंदिर को प्राचीन और पवित्र बताया था। तोलेमी ने सन 140 में भारत की यात्रा की थी।
विक्रम संवत 1540 में मुस्लिम सुलतान मोहम्मद बेगदो ने इस मंदिर पर हमला किया था। इस मंदिर का पुनर्निर्माण कनकाकृति महाराज दिगंबर भत्रक ने कराया। इस मंदिर को एक जमाने में शत्रुंजय मंदिर कहा जाता था।
माघ महीने में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को यहाँ एक मेले का आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि भगवान राम के बेटों लव और कुश तथा बहुत से बौद्ध भिक्षुओं ने यहाँ आकर मोक्ष प्राप्त किया है।