सन् पचास इक्कीसवीं सदी का भ्रामक है पथ परिवेश यहाँ का बोला हैरीसन दादी माँ से क्या है हम लोगों की संस्कृति?
इंग्लिश यूके, अमेरिका की अपनी भी कोई भाषा क्या? हिंदी भाषा संवेदनापूर्ण आदर्श प्रगति की गाथाएँ
भक्ति शक्ति की अभिव्यक्ति जीवन सिद्धांत सरल इसमें हरिशरण असल में तेरा नाम सदा करता स्मरण प्रभु का
विनयपूर्वक उन्नति पथ पर सदा अग्रसर बनो अग्रणी हैं अतीत की गाथाएँ संबल आदर्श बनाए रखने की अब
अब समाज अस्मिता शून्य भाषा में शब्दों के रूढ़ अर्थ अविष्कार विचार नहीं अपने आत्मनिर्भरता कोशिश नाकाम
हिंदी भाषा भाषी गिने-चुने कॉमेडी करते कवि सम्मेलन में हिंदी संस्कृति ज्ञान श्रृंखला में डिस्कवरी चैनल पर दिख जाते
माँ की भाषा प्यारी हिंदी अब घोषित 'इनडेंजर्ड' भाषा श्रेणी में लुप्त प्राय होने वाली भाषाओं में सीमित व्यवहार नागरी में जब तब
दिया प्रथम राजाश्रय अंग्रेजी को फिर बोलियाँ का बचाव अभियान एकता सूत्र की, जनता की हिंदी कुटिल भेद नीति से कमजोर आज
संभ्रांत जनों की भाषा अंग्रेजी है फिर भी पाते नहीं मान वे जग में उनकी भाषा भी विकृत अंग्रेजी हिंग्लिश व्युत्पत्तिहीन शब्द पुंज
थोड़े शब्दों से माँ से सृष्टि बोध अनबूझा बना रही स्कूल पढ़ाई दादी की बोली असभ्य लगती नाती वंचित है दादी दुलार से
दादी माँ ने अपने बेटे से पूछा कौतूहलवश, बदलाव कहाँ है? अब तक माँ के समय सूर्य से प्रतिभाषित हम चंद्र भाँति
लेकिन अब है घोर अंधेरा अपनी भी पहचान न संभव सन् पंद्रह इक्कीसवीं सदी में भाषा को देखा विकृत होते
GN
थी होड़ मीडिया में धन की हिंदी में इंग्लिश शब्द शान
'हिग्लिश' हिंदुस्तानी इंग्लिश 'इंग्लिंदी' संभ्रांतों की हिंदी लिपी नागरी नहीं वे पहचानते रोमन में हिंदी हो चर्चा करते
सरकार शिथिल थी भाषा-विरक्त बस एक मंत्र 'अंग्रेजी से विकास' विज्ञप्ति सिफारिश तदनुसार हो पहले दर्जे से ही इंग्लिश
डिजिटल डिवाइड बाजारमुखी पर अर्थ-परक था जन-डिवाइड थोड़े अमीर बहुतेरे अभावग्रस्त वे ज्ञान से वंचित ज्ञान क्रांति में
धन था आधार पात्रता का अवसर ही नहीं योग्यता को हिंदी हिंदुस्तानी जन भाषा ब्रज, अवधी, मगधी, मिथिला
विविध बोलियों का सम्मिलन मधुर सुगम बहुजन की भाषा प्रिय कवि तुलसी सूर कबीर रसखान रहीम पंत जयशंकर
GN
लेकिन हिंदीवादी अवसरवादी पद पाने की राजनीति में व्यस्त भुलाकर ज्ञान परक लोक सर्जन दिशाहीन सस्ते लेखन में मस्त खोखला किए जा रहे हिंदी को सृजनात्मकता समूह जिम्मेदारी
अपनों से पदच्युत दलित तिरस्कृत हिंदी सिमटी अंग्रेजी के आंचल में अपनी भाषा में पढ़े और बोलें समझेंगे तकनीकी गूढ़ ज्ञान
संवेदना जागेगी बहुजन हितार्थ लेकिन बालू वत् बिखरे प्रयास माँ! तुम्हीं बताओ दोष कहाँ मेरा, तेरा, समाज, सत्ता का?
माँ ने अपने समय बहुत देखे थे सपने अरविंद, पटेल, गाँधी के हिंदी भाषा का उदय हुआ जनक्राँति हुई आजादी पाईं
हिंदी से जुड़े और जोड़े भारत नव विचार और आविष्कारों से अग्रणी रहे भारत सकल क्षेत्र में अनुधा विज्ञान और तकनीकी में
परंपरागत ज्ञान हमारा गौरव गणित, भौतिक भारत से ही आयुर्वेद चिकित्सा, ज्योतिष विश्व स्तर पर प्रथम प्रसारित
मैकाले ने देखा ज्ञान संपदा को इंग्लिश की मदिरा दे ज्ञान हारा जब देखूँ नाती को निरीह-सा अपने घर में ही अलग-थलग
वंशज से आशाएँ धूमिल पड़तीं पर अतीत की चिनगारी है शेष विश्वास अडि़ग रख वत्स मेरे विकृति बदलेगी परिष्कार में।