ब्रह्म पुराण के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पंचमी को सप्त ऋषि पूजन व्रत का विधान है। इस दिन चारों वर्ण की स्त्रियों को चाहिए कि वे यह व्रत करें। यह व्रत जाने-अनजाने हुए पापों के पक्षालन के लिए स्त्री तथा पुरुषों को अवश्य करना चाहिए। इस दिन गंगा स्नान करने का विशेष माहात्म्य है।
यह व्रत कैसे करें :- * प्रातः नदी आदि पर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। * तत्पश्चात घर में ही किसी पवित्र स्थान पर पृथ्वी को शुद्ध करके हल्दी से चौकोर मंडल (चौक पूरें) बनाएं। फिर उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना करें। * इसके बाद गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से सप्तर्षियों का पूजन करें।
* तत्पश्चात निम्न मंत्र से अर्घ्य दें- 'कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः। जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥ दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥
* अब व्रत कथा सुनकर आरती कर प्रसाद वितरित करें। * तदुपरांत अकृष्ट (बिना बोई हुई) पृथ्वी में पैदा हुए शाकादि का आहार लें। * इस प्रकार सात वर्ष तक व्रत करके आठवें वर्ष में सप्त ऋषियों की सोने की सात मूर्तियां बनवाएं। * तत्पश्चात कलश स्थापन करके यथाविधि पूजन करें। * अंत में सात गोदान तथा सात युग्मक-ब्राह्मण को भोजन करा कर उनका विसर्जन करें।