व्यक्तित्व को निखारती है सहनशीलता

सभी धर्मों में बताया गया है कि सहनशीलता हमारे व्यक्तित्व को निखारती है। सहनशील व्यक्ति अपने जीवन में नहीं प्राप्त होने वाली वस्तु को भी सुगमता से हासिल कर लेता है। यहाँ तक कि वह साधना के मार्ग पर आगे बढ़कर सिद्धि को भी प्राप्त करने की क्षमता रखता है।
WD

लेकिन जब यही सारी बातें एक अहंकारी व्यक्ति के जीवन से गौण हो जाती है तो वह सहनशीलता के अभाव में अपने लक्ष्य से भटक जाता है। वह फूल तो सकता है, पर फलित या पुष्पित नहीं हो सकता।

हमें अहंकार दिखाई नहीं देता, पर हमेशा हमारे सिर पर ही सवार रहता है। सहनशील व्यक्ति गंभीर तथा कम बोलने वाला होता है। वह जब भी बोलेगा, अपनी भाषा में मिठास और योग्य का ध्यान रखते हुए ही बोलेगा। वह सिर्फ उतना ही बोलेगा, जिसमें उसकी बात का सम्मान हो।

वाणी और व्यवहार व्यक्ति के चिंतन की कसौटी है। वाणी वशीकरण मंत्र है। संयमित बोलने वाला अनेक झंझटों से अपने आप को बचाता है जबकि अधिक बोलने वाला अनेक मुसीबतों को निमंत्रण देता है। वह स्वयं अपनी नजरों में भी गिर जाता है। व्यक्ति को हमेशा अच्छे विचारों अथवा चिंतन में रहना चाहिए।

ND
यह भी एक परम सत्य है कि जहाँ स्नेह हो, वहाँ लक्ष्मी स्वयं दौड़ी चली आती है। पुण्य योग से अर्जित लक्ष्मी का सदुपयोग ही जीवन में शांति का कारण बनता है। जीवन पर अकेले हमारा ही नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र का भी उतना ही अधिकार है, जितना हमारे बच्चों का, हमारे परिवार का होता हैं।

इसलिए हर व्यक्ति को च‍ाहिए की वह अहंकार का मार्ग छोड़कर सहनशीलता का रास्ता अपनाएँ ताकि उसका, उसके परिवार, समाज और राष्ट्र का जीवन उज्ज्वल हो। यही सहनशीलता व्यक्ति को सिद्धि की प्राप्ति के ओर ले जाती है और ‍मानव जीवन का कल्याण होता है।

वेबदुनिया पर पढ़ें