कहने को कह रहे थे

बशीर बद्

अपनी जगह जमे हैं, कहने को कह रहे थे
सब लोग वरना बहते दर्या में बह रहे थे

ऐसा लगा कि हम-तुम कोहरे में चल रहे हों
दो फूल ऊँची-नीची लहरों पे बह रहे थे

दिल उजले पाक फूलों से भर दिया था किसने
उस दिन हमारी आँखों से अश्क बह रहे थे

अकसर शराब पीकर पढ़ती थी वो दुआएँ
हम एक ऐसी लड़की के साथ रह रहे थे

अख़बार में तो ऐसी कोई ख़बर नहीं थी
जलते मकान झूठे अफसाने कह रहे थे

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