दिल के हालात क्या कहें

रंजना श्रीवास्तव

अब तुमसे जमाने की बात क्या कहें
बिगड़े हुए दिल के हालात क्या कहें॥

जब सामने होता कोई, होती मुहब्बत रूबरू
परदे की ओट के जज्बात क्या कहें॥

न समझ सकी कौन अपना, गैर कौन महफिल में
उलझे हुए धागों से, मन के ख्यालात क्या कहें॥

दरिया के बीच डाल कश्ती, मझधार में हम चल दिए
तूफान की गुंजाइशों के, वो लम्हात क्या कहें॥

पिघले हुए शीशे-सा कोई दर्द करवट ले रहा
शीशा-ए-दिल के रूबरू जख्मों की बात क्या कहें॥

बरसात का मौसम घिरा, अश्कों की झड़ी लग गई
संग में बिजलियों की सौगात क्यकहें॥

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