'हे धनंजय! मुझसे भिन्न दूसरा कोई भी परम कारण नहीं है। माया द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, ऐसे आसुर-स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच, दूषित कर्म करने वाले मूढ़ लोग मुझको नहीं भजते।'- कृष्ण
कृष्ण ही गुरु और सखा हैं। कृष्ण ही भगवान है अन्य कोई भगवान नहीं। हिंदुओं के लिए यह अंतिम सत्य की तरह है। बहुत से हिंदू चर्च, दर्गा या अन्य मंदिर जाते हैं वे सभी भटके हुए हैं। मृत्यु के बाद उनके पास सिर्फ पश्चाताप होगा, क्योंकि वे नहीं जानते हैं कि वे सत्य को छोड़कर असत्य और भ्रम की ओर चले गए हैं। वे सभी कुलहंता और विधर्मी हैं और जिन्होंने धर्मांतरण कर लिया है बहुत जल्द अंधकार भी उनके खिलाफ होगा।
रोज गुरु घंटाल पैदा होते हैं और मर जाते हैं, लेकिन वे सभी धर्मविरुद्ध कर्म वाले हैं। पाश्चात्य सभ्यता की नकल के चलते लोग अपने धर्म से भटकने लगे हैं। जिन्होंने गीता नहीं पढ़ी उनके लिए जीवन के बाद का जीवन कठिन ही होगा। कोई बचाने वाला है तो वह कृष्ण का साथ।
हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन! उत्तम कर्म करने वाले अर्थार्थी (सांसारिक पदार्थों के लिए भजने वाला), आर्त (संकटनिवारण के लिए भजने वाला), जिज्ञासु (मेरे को यथार्थ रूप से जानने की इच्छा से भजने वाला) और ज्ञानी- ऐसे चार प्रकार के भक्तजन मुझको भजते हैं।
उन-उन भोगों की कामना द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे लोग अपने स्वभाव से प्रेरित होकर उस-उस नियम को धारण करके अन्य देवताओं को भजते हैं अर्थात पूजते हैं परन्तु उन अल्प बुद्धिवालों का वह फल नाशवान है तथा वे देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं और मेरे भक्त चाहे जैसे ही भजें, अन्त में वे मुझको ही प्राप्त होते हैं।
जो मेरी शरण होकर जरा और मरण से छूटने के लिए यत्न करते हैं, वे पुरुष उस ब्रह्म को, सम्पूर्ण अध्यात्म को, सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं। बहुत जन्मों के अंत के जन्म में तत्व ज्ञान को प्राप्त पुरुष, सब कुछ वासुदेव ही हैं- इस प्रकार मुझको भजता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है।'