साक़ी मुझे गज़क के एवज

साक़ी मुझे गज़क के एवज भी शराब दे
महशर में कौन लाख तरह का हिसाब द
नामालूम
अर्थ - गुड़ तिल्ली की मिठाई को तो गज़क कहते ही हैं, पुराने वक्त में शराब के साथ खाए जाने वाले नमकीन को भी गज़क कहा जाता था। यह शेर इस्लामी परिदृश्य का है। इस्लाम में शराब पीना पाप है। इस्लाम में यह भी विश्वास किया जाता है कि आखिर में प्रलय होगा, जिसे इस्लाम में कयामत कहते हैं। प्रलय में सब मर जाएँगे। फिर एक दिन ईश्वर सब मरे हुओं को ज़िंदा करेगा और फिर हिसाब-किताब किया जाएगा। यही हिसाब किताब का दिन महशर कहलाता है।

इसे हश्र का दिन भी कहा जाता है। शायर इस्लाम पर व्यंग्य कर रहा है। उसका कहना है कि गज़क के बदले भी मैं शराब ही ले लेता हूँ क्योंकि हश्र में जब हिसाब-किताब होगा तो शराब के साथ खाया गया नमकीन भी पाप के खाते में ही जुड़ेगा। अलग-अलग हिसाब करने से ज़्यादा उलझन होगी इसलिए गज़क के बदले भी शराब ही दे। साकी कहते हैं शराब पिलाने वाले को। ये साकी औरत भी हो सकती है।

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