विवाह मंडप नए रूप में

- सरिता मुक्तेश

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एक समय था, बहुत पहले नहीं, जब विवाह समारोहों में साज-सज्जा बड़ी ही साधारण व सादगीपूर्ण हुआ करती थी। यहाँ तक कि रईस घरानों के विवाह मंडप भी परंपरागत विवाह मंडप ही लगते थे, और कुछ नहीं। अब जमाना बदल गया है और इस कदर बदला है कि अक्सर विवाह के मंडप तथा किसी भव्य फिल्म के सेट में अंतर करना मुश्किल हो जाता है।

गत कुछ वर्षों से विवाह मंडपों की साज-सज्जा में अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन आए हैं। विभिन्न थीम्स पर किसी फिल्म के सेट जैसे मंडप में विवाह की रस्में पूरी की जाती हैं। कहीं कोई भव्य 'किला' खड़ा कर दिया जाता है, तो कहीं विशाल समुद्री जहाज, कहीं राजस्थानी हवेली, तो कहीं कोई योरपीय राजमहल।

  विवाह के इन 'सेट्स' का निर्माण अमूमन थरमोकोल से किया जाता है। इसी से दीवारें, खंभे आदि बनाए जाते हैं तथा उन पर पेंट करके विभिन्न दृश्यों का प्रभाव उत्पन्न किया जाता है। बाकी काम पुष्प सज्जा तथा लाइटिंग द्वारा किया जाता है।      
यहीं दूल्हे राजा कभी किला फतह करने, तो कभी जहाज की कप्तानी संभालने और कभी महल/हवेली की शान बढ़ाने पधारते हैं। ऐसे मंडपों की सज्जा पर लोग खासी बड़ी राशि खर्च करने लगे हैं। जितना समय वर-वधू के कपड़ों आदि के चयन में खर्च किया जाता है, लगभग उतना ही यह तय करने में लगाया जाता है कि मंडप की थीम क्या होगी, इसकी सजावट किससे और कैसी कराना है, कितना बजट रखा जाए आदि।

विवाह के इन 'सेट्स' का निर्माण अमूमन थरमोकोल से किया जाता है। इसी से दीवारें, खंभे आदि बनाए जाते हैं तथा उन पर पेंट करके विभिन्न दृश्यों का प्रभाव उत्पन्न किया जाता है। बाकी काम पुष्प सज्जा तथा लाइटिंग द्वारा किया जाता है। यह कलाकारों के हुनर पर निर्भर करता है कि वे नकली को कितना असली जैसा बना पाते हैं।

अब नई प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी की बदौलत यह भी संभव हो गया है कि ईको-फ्रैंडली प्रिंटर द्वारा लकड़ी, काँच, कपड़े, कैनवास आदि पर चाहे जैसे चित्र उकेरे जाएँ। इससे थरमोकोल पर निर्भरता कम हो जाएगी और समय तथा पैसे की बचत भी हो सकेगी। यही नहीं, इसमें हानिकारक रंगों से पेंट करने की भी जरूरत नहीं रहेगी। लेकिन यह टेक्नोलॉजी अभी नई है और इसे अपनी पैठ बनाने में समय तो लगेगा ही। तब तक दूल्हे राजा घोड़ी पर सवार हो, थरमोकोल का किला फतह करने आते रहेंगे।