चालीस वर्षीय छोटीबाई होशंगाबाद जिले के एक छोटे-से गाँव पलासी की रहने वाली हैं। वे एक स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष हैं। छोटीबाई निरक्षर हैं, लेकिन वे जागरूक महिला हैं। उनके मन में सामाजिक बदलाव का सपना है।
छोटीबाई को अभिव्यक्ति के किसी मंच की तलाश थी, लेकिन वे निरक्षरता को मखौल का बहाना भी नहीं बनने देना चाहती थीं। जिले से महिलाओं के द्वारा ही प्रकाशित एक दीवार पत्रिका ने छोटीबाई को यह मौका मुहैया कराया। वे 'बिन्ना' नाम की इस दीवार पत्रिका से सक्रिय रूप से जुड़ गईं। छोटीबाई अब नियमित किसी से इस दीवार पत्रिका को पढ़वाती हैं। यही नहीं, महिलाओं को जागरूक करने के लिए इस पत्रिका के लिए सामग्री लिखवाती भी हैं। साथ ही उनकी यह भी कोशिश है कि वे खुद पढ़-लिख पाए।
कंचन उपाध्याय सावलखेड़ा गाँव की पढ़ी-लिखी महिला हैं। वे भी अपनी अभिव्यक्ति के मंच की तलाश में थीं। 'बिन्ना' से उन्हें भी मदद मिली। अब वे 'बिन्ना' की नियमित पाठक हैं और लेखक भी। छोटीबाई और कंचन जैसी और भी महिलाएँ होशंगाबाद में हैं जिन्हें 'बिन्ना' ने पढ़ने-लिखने की प्रेरणा दी और अपने अधिकारों के लिए जागरूक करने का काम किया है।
ग्राम सेवा समिति नाम की एक स्वयंसेवी संस्था के नेतृत्व में होशंगाबाद जिले के गाँव रोहना तथा निटाया से यह 'बिन्ना' दीवार पत्रिका मासिक प्रकाशित होती है। इसमें मुख्य रूप से महिला जागरूकता से जुड़ी सामग्री छापी जाती है। 'बिन्ना' के प्रकाशन में ज्यादातर महिलाओं का ही योगदान होता है। इसके संपादन समूह से जुड़ी उर्मिला दुबे तथा गीता श्रीवास्तव बताती हैं, हमने 'बिन्ना' महिलाओं के आग्रह पर ही शुरू किया है। इसके नाम में भी एक संदेश छुपा हुआ है। 'बिन्ना' बुंदेलखंडी बोली का एक शब्द है जिसका अर्थ सहेली होता है।
संपादिकाद्वय कहती हैं कि अपनी अभिव्यक्ति के लिए महिलाओं के पास कोई मंच नहीं था। गौरतलब है कि गाँव में अखबारों की पहुँच भी बहुत कम है। और यदि अखबार आते भी हैं तो फिर पंचायत, स्कूल या अन्य सार्वजनिक स्थलों पर, जहाँ महिलाओं की पहुँच नहीं होती है इसलिए क्षेत्र की कम पढ़ी-लिखी, साक्षर या नवसाक्षर महिलाओं को एक ऐसे माध्यम की तलाश थी जिससे उन्हें कुछ उपयोगी सामग्री मिल सके। आज से चार साल पहले ग्राम सेवा समिति ने इसकी पहल करने में मदद की। ग्राम सेवा समिति गाँधीवादी विचारों को पोषित तथा प्रसारित करने वाली संस्था है,जो 1953 से होशंगाबाद में विकास, जनपैरवी तथा प्रकाशन के काम में संलग्न है।
महिलाओं की माँग को देखते हुए इसकी अब तीन सौ प्रतियाँ प्रकाशित हो रही हैं। पत्रिका के वितरण के लिए संपादकीय टीम के साथी गाँव-गाँव जाते हैं। पाठकों की प्रतिक्रियाएँ लेना और उन्हें 'बिन्ना' की प्रति देना प्रमुख काम होता है। गाँव के सार्वजनिक जगहों जैसे स्कूल, पंचायत भवन, आँगनवाड़ी में 'बिन्ना' को दीवार पर चिपका दिया जाता है। कुछ प्रतियाँ गाँव के मोहल्लों में महिलाएँ लगाती हैं। जब भी महिलाओं को समय मिलता है, वे 'बिन्ना' को देखने के लिए चली आती हैं।
होशंगाबाद ब्लॉक की करीब पच्चीस पंचायतों में 'बिन्ना' पहुँचता है। इसकी पाठक संख्या है करीब एक हजार। संपादन समूह के एक साथी रामकुमार गौर कहते हैं कि हमने हर गाँव में 'बिन्ना' के प्रतिनिधि भी बनाए हैं। 'बिन्ना' के पाठक तो पुरुष भी हैं, लेकिन 'बिन्ना' की प्रतिनिधि हमने सिर्फ महिलाओं को ही बनाया है।
प्रतिनिधियों की दो तरह की जिम्मेदारी प्रमुख रूप से होती है। एक तो वे 'बिन्ना' का वितरण अपने गाँव में करती हैं, साथ ही महिलाओं की प्रतिक्रिया भी उपलब्ध कराती हैं। यदि कोई निरक्षर महिला 'बिन्ना' के संदेश को समझना चाहती है तो उसे भी ये प्रतिनिधि सरल भाषा में समझाने की कोशिश करती हैं। इसी तरह से यदि कोई निरक्षर महिला अपना संदेश 'बिन्ना' के जरिए और महिलाओं तक भेजना चाहती है तो उसे लिखकर भेजती हैं। सरकारी सूचनाओं तथा कानून को भी हम सरल भाषा में 'बिन्ना' के माध्यम से समझाने की कोशिश करते हैं।