षट्‍कर्म अथवा शुद्धिकारक क्रियाएँ

शरीर को स्वस्थ्य और शुद्ध करने के लिए छ: क्रियाएँ विशेष रूप से की जाती हैं। जिन्हें षट्‍कर्म कहा जाता है। शरीरिक शुद्धि के बिना आसन-प्राणायाम का पूर्ण लाभ नहीं प्राप्त हो सकता है।

ये क्रियाएँ हैं:- 1. त्राटक 2. नेती. 3. कपाल भाती 4. धौती 5. बस्ती 6. नौली।

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शरीर जीवात्मा का घर है। प्राणों की क्रियाएँ संतुलित और समतापूर्ण हो इसके लिए इसकी यदा-कदा सफाई करते रहने की आवश्यकता होती है। षट्‍कर्म का अभ्यास प्रतिदिन नहीं किया जाना चाहिए। जब व्यक्ति अपने शरीर में कफ, पित्त और वायु की अधिकता अनुभव करे तो इसको करना चाहिए।

शौच (शुद्धता) दो प्रकार का होता है। शारीरिक और मानसिक (वाह्म और आंतरिक) षट्‍कर्म ऐसी क्रियाएँ हैं जिससे शारीरिक (वाह्म) शुद्धता प्राप्त होती है। राग, द्वेष, अहंकार, काम, क्रोध, लोभ इत्यादि आंतरिक अशुद्धियाँ हैं। केवल वाह्म शुद्धता ही पर्याप्त नहीं है। योगी को मानसिक शुद्धि भी अवश्य करनी चाहिए।

काम, क्रोध, लोभ, द्वेष इत्यादि मानसिक मलिनताएँ शरीर के अंदर विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैं। अशुद्ध भावनाओं के कारण प्राणों में असंतुलन हो जाता है। शरीर के विभिन्न अवयव इससे प्रभावित हो जाते हैं। तंत्रिकातंत्र दुर्बल हो जाता है। इसलिए शरीर को स्वस्‍थ और शक्तिशाली बनाने के लिए मानसिक मलिनताओं को दूर करना आवश्यक है।

भय से हृदय रोग होता है। दु:ख से तंत्रिकातंत्र असंतुलित हो जाता है। निराशा से दुर्बलता होती है। लोभ प्राणों को असंतुलित करता है जिससे अनेक प्रकार के शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं। अहंकार जीवन की पूर्णता का आनंद नहीं लेने देता। इससे पाचनतंत्र तथा किडनी संबंधी रोग होते हैं। अधिकांश बीमारियाँ रोगी की मानसिक विकृतियों के ही कारण हुआ करती हैं।

इसी प्रकार ध्यान से संपूर्ण शरीर में प्राणों का प्रवाह निर्बाध गति से संचारित होता है। यह हृदय की अनेक बीमारियों को दूर करता है। उदारता हृदय को प्रफुल्लता प्रदान करती है। इससे सिर दर्द, स्नायुओं की दुर्बलता और व्यग्रता सपाप्त होती है। करुणा के अभ्यास से शरीर में अमृत का प्रवाह बढ़ता है। मानसिक शांति से शरीर में प्रचुर मात्रा में शक्ति आती है। प्रत्येक सद्‍गुण से प्रखर स्वास्थ्य और सुख की प्राप्ति होती है।

पतंजलि महर्षि के अनुसार तप (शारीरिक और मानसिक), स्वाध्याय (सद्‍ग्रंथों का अध्ययन एवं ईश्वर नाम का जप) और ईश्वर प्राणिधान (ईश्वर के प्रति शरणागति का भाव) क्रिया योग कहलाता है। (राजयोग साधना पाद-1)

पुस्तक : आसन, प्राणायाम, मुद्रा और बंध (Yaga Exercises For Health and Happiness)
लेखक : स्वामी ज्योतिर्मयानंद
हिंदी अनुवाद : योगिरत्न डॉ. शशिभूषण मिश्र
प्रकाशक : इंटरनेशनल योग सोसायटी