योग : संयम और संकल्प

शुक्रवार, 11 मई 2012 (14:44 IST)
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संयम और संकल्प योग के तप का ही छोटा रूप है। संयम और संकल्प के अभाव में व्यक्ति के भीतर क्रोध, भय, हिंसा और व्याकुलता बनी रहती है, जिसके कारण उसकी जीवनशैली अनियमित और अवैचारिक हो जाती है। संकल्प से ही संयम साधा जा सकता है- संकल्प लें कि मैं अति उत्तम और संयमित भोजन ही ग्रहण करूँगा। मैं अति उत्तम विचार और भाव से ही स्वयं के मस्तिष्क को पोषित करूँगा।

संयम के तीन प्रकार हैं- 1.शारीरिक संयम, 2.मानसिक संयम और 3.सांसारिक संयम।

शारीरिक संयम-: भोजन कम और हल्का करें। भोजन में खटाई, चटपटी, अधिक नमकीन आदि पदार्थ नहीं लें। इससे भूख भी मिट जाती है और आलस्य भी नहीं रहता। आवश्‍यकता से अधिक पानी नहीं लें। पानी भी थोड़ा ही पीना चाहिए। उचित नींद लें, लेकिन ज्यादा ना सोएं। ज्यदा या कम सोने से शक्ति क्षीण होती है।

मानसिक संयम- : मानसिक संयम का सर्वोत्तम उपाय है मौन। इसके अलावा किसी से भी शत्रुता नहीं रखनी चाहिए। काम, क्रोध, लोभ, मद, अहंकार आदि से दूर रहकर सतत विनम्र बने रहना जरूरी। कभी किसी से छल नहीं करें। अहंकार और झूठ से सदा दूर रहें। मान-सम्मान, बढ़ाई या चंचलता से दूर रहें। संतोष धारण करें, क्षमा को अपनाएं।

टोना, ज्योतिष, यंत्र-मं‍त्र, भूत-प्रेत, बाबा आदि सभी झूठ हैं। धातु-रसायन आदि भी झूठ हैं। व्यर्थ के नाटक-नौटंकी, सिनेमा, बाग-बगीचा आदि में अधिक नहीं जाएं। इनसे दूर रहने से मानसिक द्वंद्व और विरोधाभाष नहीं रहता और सकारात्मकता बढ़ती है।

सांसारिक संयम-: सांसारिक घटनाक्रम मन को व्यग्र करते हैं जिससे शरीर पर नकारात्मक असर पड़ता है। संसार आपको बदले इससे पहले आप स्वयं बदल जाएं। सांसारिक बातों की अधिक चिंता नहीं करें, निश्चय होकर मन को स्थिर रखने का अभ्यास करें। संसार के प्रति तटस्थ भाव सदा रखें।

उपर्युक्त सभी संयमों का दृढ़ता से पालन करने से व्यक्ति को रोग, शोक, संताप नहीं सताते और वह निरोगी रहकर लम्बी उम्र जीता है।

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