स्वाध्याय से स्वयं को जानने और मन को बदलने का मौका मिलता है। तप से शरीर कुंदन बनता है और ईश्वर प्राणिधान अर्थात ईश्वर में विश्वास और समर्पण से जीवन में सुख और शांति बढ़ती है। योग के नियम के यह उपांग सबसे महत्वपूर्ण माने गए है।
स्वाध्याय : स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना। आप स्वयं के ज्ञान, कर्म और व्यवहार की समीक्षा करते हुए पढ़ें वह सब कुछ जिससे आपके आर्थिक, सामाजिक जीवन को तो लाभ मिलता ही हो, साथ ही आपको इससे खुशी भी मिलती हो। तो बेहतर किताबों को अपना मित्र बनाएँ और स्वयं के मन को बेहतर दिशा में मोड़ें।
तप : तप शब्द का अर्थ व्यापक है। तप की शुरुआत आप छोटे-छोटे संकल्प से कर सकते हैं। अपनी बुरी आदतों को छोड़ने का संकल्प ले। आहार संयम का संकल्प लें और फिर धीरे-धीरे सरल से कठिन तप की और बढ़ते जाएं। ध्यान रखें की तप में शरीर को सताना नहीं है बल्कि शरीर के दूषित पदार्थ बाहर निकालकर शरीर और मन को मजबूत बनाना है।
ईश्वर प्राणिधान : सिर्फ एक ही ईश्वर है जिसे ब्रह्म, परमेश्वर या परमात्मा कहा जाता है। ईश्वर निराकार और अजन्मम, अप्रकट है। इस ईश्वर के प्रति आस्था रखना ही ईश्वर प्राणिधान कहलाता है। इसके अलावा आप किसी अन्य में आस्था न रखें। चाहे सुख हो या घोर दु:ख, उसके प्रति अपनी आस्था को डिगाएँ नहीं। इससे आपके भीतर पाँचों इंद्रियों में एकजुटता आएगी और आपका आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा जिससे लक्ष्य को भेदने की ताकत बढ़ेगी। वह लोग जो अपनी आस्था बदलते रहते हैं वे भीतर से कमजोर होते जाते हैं।
इसका लाभ : शरीर, मन और मस्तिष्क हमासे सेहतमंद बने रहेंगे। जीवन में सभी तरह की बाधाओं को आत्मबल के बल पर जीता जा सकता है। इस योग से किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं सताता। स्वाध्याय से जहां व्यक्ति के भीतर के क्रोध, लोभ, काम, बेहोशी आदि विकार निकलते हैं वहीं तप से शरीर ताकतवान बनता है। ईश्वर पर अटूट आस्था रखने से जीवन में कभी भी किसी रोग और शोक का सामना नहीं करना पड़ता है और सफलता का रास्ता उसके लिए आसान हो जाता है।
योग पैकेज : अब हम बात करते हैं योग एक्सरसाइज की। हम जानते हैं कि आपके पास समय नहीं है तब क्या करें? समय हो तब भी आप क्या करें? तब फटाफट सूर्य नमस्कार की 12 स्टेप को अच्छे से सीखकर इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लें। दूसरा अनुलोम-विलोम और कपालभाँति करें, बस।