2004 का एशिया कप कशमकश से भरा हुआ टूर्नामेंट था जिसमें उपमहाद्वीप की 3 टीमें भारत, श्रीलंका और पाकिस्तान लगभग एक ही स्तर की लग रही थी, लेकिन भारत और श्रीलंका का स्तर थोड़ा और बेहतर था।
टीमें 2 ग्रुप में बंटी हुई थी। ग्रुप ए में पाकिस्तान, बांग्लादेश और हॉंगकॉंग थे तो ग्रुप बी में भारत श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात थे। ग्रुप स्टेज की 2 टीमें सुपर 4 में जाने वाली थी। ग्रुप ए में गत विजेता पाकिस्तान ने बांग्लादेश और हॉंगकॉंग पर बड़ी जीत दर्ज कर ग्रुप ए शीर्ष पर खत्म किया और हॉंगकॉंग टूर्नामेंट से बाहर हो गई। वहीं ग्रुप बी में श्रीलंका ने संयुक्त अरब अमीरात को हराया और भारत को 16 रनों से हराकर अंकतालिका के शीर्ष पर पहुंची। भारत दूसरे स्थान पर रही और संयुक्त अरब अमीरात टूर्नामेंट से बाहर हो गई।
सुपर चार में पिछली बार के संस्करण की 4 टीमों पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका भारत को ही आर पार होना था। भारत ने पहले मैच में बांग्लादेश को 8 विकेटों से करारी हार दी। लेकिन असली मुकाबले इसके बाद शुरु हुए।
पाकिस्तान बनाम श्रीलंका का मैच एकतरफा होकर रह गया और मेजबान ने 123 रनों का लक्ष्य 3 विकेट खोकर हासिल कर लिया। इसके बाद श्रीलंका ने बांग्लादेश को भी 10 विकेटों से हराकर फाइनल में जगह बना ली। टीम ने आसानी से 191 रन बना लिए।
पाकिस्तान से मिली भारत को करारी हार
अब अगले मैच पर सबकी निगाहें टिकी थी। भारत कुछ ही महीने पहले पाकिस्तान को 3-2 से उसी के घर में हराकर आया था। ऐसे में पिछले मैच में ताश के पत्तों की तरह ढही पाकिस्तान बल्लेबाजी पर अतिरिक्त दबाव था, वह भी करो या मरो के मैच में। लेकिन शोएब मलिक के शानदार शतक ने पाकिस्तान को 300 रनों के आंकड़े तक पहुंचा दिया। धीमी पिच पर यह लक्ष्य मुश्किल होने वाला था और सचिन तेंदुलकर की अकेली पारी काम नहीं आई और भारत यह मैच 59 रनों से हार गया।
पाकिस्तान किसी तरह इस टूर्नामेंट में जीवित था। लेकिन फाइनल में पहुंचने के लिए उसके लिए जरूरी था कि अगले मैच में श्रीलंका भारत को हराए। पाकिस्तान से हार के बाद भारत के लिए भी फाइनल की जगह पाने के लिए यह करो या मरो का मैच हो गया था।
भारत ने वीरेंद्र सहवाग के ऑलराउंड प्रदर्शन के कारण मेजबान श्रीलंका को टूर्नामेंट की पहली हार थमाई और फाइनल में जगह बनाई। 4 रनों की इस जीत ने भारत को फाइनल में पहुंचा दिया। वीरेंद्र सहवाग ने पहले बल्ले से 81 रन बनाए और फिर 3 विकेट लेकर टीम इंडिया की वापसी कराई।
अब पाकिस्तान बनाम बांग्लादेश मैच बेमतलब का हो गया था क्योंकि भारत और श्रीलंका फाइनल में पहुंच गए थे। भारत और श्रीलंका दोनों ही एक दूसरे को 1-1 बार हरा चुके थे लेकिन अब जंग फाइनल की थी।
कशमकश भरे एशिया कप में भारत श्रीलंका को हराकर पहुंचा फाइनल लेकिन खिताब हारा
1 अगस्त 2004 को खेले गए खिताबी मुकाबले में श्रीलंका ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी चुनी। शुरुआती झटके लगने के बाद कप्तान मार्वन अट्टापट्टू और कुमार संगाकारा की शतकीय साझेदारी ने लंका को मैच में वापस लाया ही था कि यह साझेदारी टूटते ही विकेटों की झड़ी लग गई। भारतीय स्पिनरों के सामने श्रीलंका जैसे तैसे 9 विकेट खोकर 228 रन बना पाई।
भारतीय पारी शुरु हुई तो श्रीलंका ने लगातार विकेट लेकर भारतीय ड्रेसिंग रुम में खल बली मचा दी। गिरते विकेटों के बीच सचिन तेंदुलकर टिके रहे लेकिन जैसे ही उनका विकेट गिरा उम्मीद टूट गई और श्रीलंका ने यह खिताबी मुकाबला 25 रनों से जीतकर एशिया कप पर कब्जा जमा लिया।
श्रीलंका के कप्तान मार्वन अट्टापट्टू को ना सिर्फ ट्रॉफी मिली बल्कि 65 रनों की पारी के लिए मैन ऑफ द मैच का पुरुस्कार भी मिला। टूर्नामेंट में 293 रन और 4 विकेट लेने वाले सनथ जयसूर्या को मैन ऑफ द सीरीज चुना गया।
बतौर कप्तान सौरव गांगुली आखिरी बहुराष्ट्रीय टूर्नामेंट में खिताबी जीत को तरसे
कप्तान सौरव गांगुली और उनके फैंस के लिए यह खिताबी हार पचाना मुश्किल था क्योंकि 1 साल पहले ही भारतीय टीम साल 2003 वनडे विश्वकप का फाइनल खेलकर आई थी। उससे 1 साल पहले श्रीलंका में ही भारत ने मेजबान के साथ चैंपियन्स ट्रॉफी साझा की थी क्योंकि बारिश ने मैच में खलल डाल दी थी। साल 2000 में भी भारत चैंपियन्स ट्रॉफी के फाइनल में पहुंचा था लेकिन वहां टीम को न्यूजीलैंड के हाथों खिताबी हार मिली थी।
लगातारी आईसीसी फाइनल में हारने के बाद कप्तान सौरव गांगुली और उनकी टीम को एशिया कप की खिताबी जीत जख्मों पर मलहम दे सकती थी लेकिन घाव और बढ़ गया। यह बतौर कप्तान सौरव गांगुली का आखिरी बहुराष्ट्रीय (3+) टूर्नामेंट रहा और अगले साल ग्रैग चैपल से विवाद के बाद उन्होंने कप्तानी छोड़ दी।