अनंत देव की आराधना का पर्व

- ं. सुरेंद्बिल्लौर

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गणेश चतुर्थी से गणेशजी का दस दिवसीय उत्सव अनंत चर्तुदशी पर समाप्त होता है। अनंत स्वयं भगवान कृष्ण रूप है। भगवान कृष्ण से युधिष्ठिर पूछते है- श्रीकृष्ण ये अनं‍त कौन है? क्या शेष नाग हैं, क्या तक्षक सर्प है अथवा परमात्मा को कहते है।

तब श्रीकृष्ण कहते हैं मैं वहीं कृष्ण हूं जो (अनंत रूप मेरा ही है) सूर्यादि ग्रह और यह आत्मा जो कहे जाते हैं। और पल-विपुल-दिन-रात-मास-ऋतु-वर्ष-युग यह सब काल कहे जाते हैं। जो काल कहे जाते है, वहीं अनंत कहा जाता है। क्योंकि ये निरंतर चलता रहता है।

मैं वहीं कृष्ण हूं जो पृथ्वी का भार उतारने के लिए बार-बार अवतार लेता हूं। आदि, मध्य, अंत कृष्ण, विष्णु, हरि, शिव, वैकुंठ, सूर्य-चंद्र, सर्वव्यापी ईश्वर तथा सृष्टि को नाश करने वाले विश्व रूप महाकाल इत्यादि रूपों को मैंने अर्जुन के ज्ञान के लिए दिखलाया था। अनंत चर्तुदशी पर प्रभु की ये प्रार्थना अत्यंत लाभदायक है।

त्वमादिदेव: पुरुष: पुराण-
स्त्वमस्य विश्वस्य परं विधानम्
वेन्तासि वेधं च परं च धाम
त्वया तवं विश्वमनंतरूपं।

अर्थात् आप आदि देव और सनातन पुरुष हैं। आप इस जगत के आश्रयदाता, जानने योग्य और परम धाम है। हे अनंत रूप आपसे ही यह सब जगत व्याप्त अर्थात् परिपूर्ण है।

वायुर्यमोदग्निर्वरूण: शशांक:
प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेस्तु सहस्त्रकृत्व:
पुनश्च भुयोपि नमो नमस्ते।।

अर्थात् आप वायु,यमराज, अग्नि, वरूण,चंद्रमा, प्रजा के स्वा‍मी ब्रह्मा और ब्रह्मा के भी पिता है। आपके लिए हजारों बार नमस्कार है-नमस्कार है। आपके लिए पुन: बारंबार नमस्कार है।

हे अनंत सामर्थ्यवाले देव, आपको चारों दिशाओं से नमस्कार है। आपको आगे और पीछे से भी नमस्कार है, क्योंकि अनंत पराक्रमशाली आप, समस्त संसार को व्याप्त किए हुए हैं।। अत: आप ही सर्वरूप है।

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अनंत चतुर्दशी के दिन इस प्रकार प्रभु से प्रार्थना करके देखिए, अनंत देव आपके सारे कार्य संपन्न कर देंगे और प्रसन्न होंगे। जैसे, कौंडिल्य के अपराध को क्षमा कर प्रसन्न हुए थे।

अनंत चतुर्दशी की कथा :
सतयुग में एक सुमंत नाम का ब्राह्मण था। उसने अपनी कन्या शीला का विवाह विधि-विधानपूर्वक कौंडिल्य ऋषि से कर दिया। शीला ने अनंत चर्तुदशी पर पूजन कर कौंडिल्य को चौदह गांठ वाला (धागा) अनंत भुजा में बांध दिया, परंतु कौंडिल्य ने उस धागे का अपमान कर उसे आग में जला दिया। परिणामस्वरूप उन्हें कई कष्टों का सामना करना पड़ा।

पूरे ब्रह्मांड में भटकने के बाद भी शरण नहीं मिली। अंत में बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। फिर थोड़ा होश आने पर ह्रदय से अनंत देव को- हे अनंत! कहकर आवाज लगाई। तभी शंख चक्रधारी श्री भगवान ने स्वयं प्रकट होकर आशीर्वाद दिया, ऐसे हैं दयालु प्रभु।

उस अनंत भगवान के शरण में जाने से सर्वकार्य मनोरथ पूर्ण हो जा‍ते हैं। अनंत चर्तुदशी अपने आपमें भगवान स्वयं कृष्ण का दिवस है।

इति शुभम्।

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