मुख्यतः पत्रिका के आधार पर फल-कथन हेतु सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु को ही व्यवहार में लिया जाता है। किन्तु वर्तमान में हर्षल, नेपच्यून तथा प्लूटो नामक 3 अन्य ग्रहों का भी समावेश इनमें किया गया है। तदनुसार फलित कथन और भी सुस्पष्ट तथा सटीक हो जाता है। प्रस्तुत है नेपच्यून, हर्षल तथा प्लूटो से संबंधित कुछ सरल योगों का वर्णन।
पत्रिका में नेपच्यून कहीं भी मीन राशि के साथ बैठा होगा तो उस भाव में शुभत्व दिखाई देगा। पत्रिका के किसी भी भाव में यदि नेपच्यून गुरु के साथ होगा तो उस भाव के शुभत्व में वृद्धि करेगा। पत्रिका के पंचम भाव में नेपच्यून और मंगल या नेपच्यून और राहु बैठे होंगे तो ऐसे जातक को संतान संबंधी कष्ट रहेगा। सप्तमेश नीच राशि का हो और उसके साथ नेपच्यून भी हो तो दाम्पत्य जीवन असंतुष्टिकारक रहता है।
नेपच्यून और शनि यदि मकर अथवा कुंभ राशि के होकर दसवें भाव में हों तो जातक को कारोबार मे बहुत सफलता मिलती है। पुनः यह युति पितृ सुख में न्यूनता लाती है। पत्रिका में बारहवें भाव में अकेला नेपच्यून जातक को कई प्रकार से शुभत्व प्रदान करता है। हां, यदि पाप ग्रह से दृष्टि हुआ तो निश्चय ही धनात्मकता में कमी आती है। पत्रिका में किसी भी भाव में नेपच्यून यदि शुक्र, चंद्र एवं बुध अथवा शुक्र, चंद्र एवं गुरु के साथ हो तो निश्चय ही जातक राजयोग का अधिकारी होता है।
किसी पुरुष की पत्रिका में यदि हर्षल ग्रह चंद्रमा के साथ हो तथा वह किसी भी भाव में स्थित हो, तो यह उस व्यक्ति के दाम्पत्य जीवन को बिगाड़ देता है। विशेष रूप से सातवें भाव में यह युति होने पर बहुत ही ज्यादा ऋणात्मकता दिखाई देती है। यदि किसी स्त्री की पत्रिका में हर्षल ग्रह कहीं भी सूर्य के साथ हो, वह किसी भी भाव में स्थित हो, उसको दाम्पत्य जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
यदि यही युति सातवें भाव में हो तो इस योग के और भी ऋणात्मक हो जाने से तलाक भी हो सकता है। जिस व्यक्ति की पत्रिका में हर्षल और शनि एक साथ किसी भी भाव में 1 अंक के साथ बैठे हों उसकी मान-प्रतिष्ठा में कमी आती है। यही युति दसवें भाव में होने पर जातक को किसी कार्य से अपयश मिलता है। जिस स्त्री की पत्रिका में सप्तमेश और अष्टमेश दोनों एक साथ हर्षल के साथ सातवें घर में हों उसका संबंध अन्य पुरुष से होता है।
हाँ, यदि इनमें से एक ग्रह सौम्य हो तो इस फल में न्यूनता आती है। तीसरे तथा ग्यारहवें स्थान पर यदि अकेला हर्षल पड़ा हो तो जातक को बहुत धन लाभ होता है तथा उसे भाइयों का अथवा परिवार का सुख मिलता है। जिस भी व्यक्ति (महिला) की पत्रिका में हर्षल तथा मंगल एक साथ पांचवें भाव में होते हैं, उसे संतान कष्ट रहता है।
दसवें भाव में अकेला हर्षल एक को छोड़कर किसी भी अंक के साथ लिखा हो तथा 1, 4, 7 भाव में से कहीं भी गुरु हो, तो जातक उच्च पद पाता है अथवा उसे बहुत प्रतिष्ठा मिलती है। किसी पुरुष की पत्रिका में किसी भी अंक के साथ शुक्र तथा हर्षल किसी भी भाव में लिखे होंगे तो पत्नी के साथ उसके संबंध तनावग्रसित रहेंगे। यही युति अष्टम भाव में होने पर मनमुटावों के परिणामस्वरुप अन्य से अनैतिक संबंध भी दर्शाती है।
चंद्र, मंगल तथा हर्षल तीनों का पत्रिका के किसी भी भाव में एक साथ होना धनिक योग बनाता है। ऐसे जातक को अनायास धन प्राप्त होता है। हर्षल तथा मंगल यदि पत्रिका के प्रथम स्थान में हों अथवा हर्षल राहु और मंगल पत्रिका के प्रथम स्थान में हों तो जातक के सिर में चोट लगती है। जिस स्त्री की पत्रिका में हर्षल तथा शनि सातवें भाव में हों तथा सूर्य प्रथम भाव में हो, चाहे फिर वह किसी भी अंक के साथ क्यों न हो, वह स्त्री पर-पुरुषों से संबंध रखती है।
पत्रिका में प्लूटो और शनि प्रथम भाव में एक साथ होने पर जातक को मस्तिष्क संबंधी विकार होते हैं। प्लूटो और मंगल एक साथ यदि चतुर्थ भाव में हों तो जातक को अस्थि संबंधी विकार होता है। दुर्घटना भी हो सकती है। यदि पत्रिका में प्लूटो तथा शुक्र व मंगल एक साथ आठवें भाव में हों तो जातक को गुप्तेन्द्रिय संबंधी कोई रोग रहता है। और भी योग हैं।
किसी भी फल की ऋणात्मकता को दूर करने के लिए हर्षल, प्लूटो अथवा नेपच्यून के साथ जो भी ग्रह हों, उनसे संबंधित रत्न धारण करना अथवा दान-जप आदि करना चाहिए। यदि इनके साथ एक से अधिक ग्रह हों तो उनमें से किसी भी एक ग्रह से संबंधित उक्त उपाय करना श्रेयस्कर होता है।