अब तक नितांत व्यक्तिगत मामला माना जाने वाला धर्म-कर्म और दान-पुण्य भी आउटसोर्सिंग की राह पर चल पड़ा है। सुनकर आश्चर्य हो तो हो, पर सच यही है। देश-विदेश में बसे हजारों-लाखों लोग इस नई धार्मिक सेवा-सुविधा का लाभ उठाकर 'मन की शांति' पा रहे हैं।
कई दिनों का समय, सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर की यात्रा, मंदिरों व तीर्थ-स्थलों के दुर्गम रास्तों और लंबी-लंबी कतारों से बचने-बचाने के लिए धर्म-कर्म की यह आउटसोर्सिंग सेवा तेजी से अपने पंख पसार रही है। सभी धर्मों के लोगों के लिए यह सेवा बहुत फायदेमंद साबित हो रही है।
इंटरनेट और नेटवर्किंग के इस दौर में कई ऐसे व्यक्ति और संस्थाएँ आगे आने लगी हैं जिनके माध्यम से आप किसी मंदिर, चर्च, दरगाह, गुरुद्वारे या तीर्थ स्थल पर जाए बिना ही अपनी ओर से मनवांछित पूजा-अर्चना या अन्य अनुष्ठान करवा सकते हैं। एक तरह से ये लोग या संस्थाएँ आपके प्रतिनिधि के रूप में काम करती हैं। इस तरह की अप्रत्यक्ष पूजा से देवी-देवता कितने प्रसन्न होते हैं, यह तो वे ही जानें, हाँ, इससे आपके दिल को तस्सली और दूसरों के दिलों को खुशी जरूर मिल जाती है।
असल में, आधुनिकता की दौड़ में शामिल लोगों के पास जैसे-जैसे सुविधाएँ बढ़ी, उसी अनुपात में समय की कमी होने लगी। लेकिन इसके बावजूद भी आस्थावान लोगों ने अपने धार्मिक संस्कारों का दामन नहीं छोड़ा। काम-धंधे की वजह से भले ही अपना राज्य या देश छोड़ना पड़ा हो, लेकिन अपने धर्म-कर्म से लगातार जुड़े रहे। ऐसी स्थिति में ही जरूरत पड़ी ऐसे लोगों की जो उनकी ओर से किसी मंदिर या अन्य तीर्थ स्थान पर जाकर धार्मिक संस्कारों को पूरा कर सकें।
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उनके 'धर्म' और इनके 'कर्म' की इसी आवश्यकता ने जन्म दिया आउटसोर्सिंग को। बड़े-बड़े मंदिरों और इंटरनेट पर आज सैकड़ों-हजारों लोग आपकी ओर से तीर्थ-यात्रा, पूजा-अर्चना आदि करने के लिए तैयार बैठे हैं। 'जैसा काम, वैसा दाम' की तर्ज पर सेवा-शुल्क तय करते हुए ये लोग पूजा-अनुष्ठान के बाद आपके बताए पते पर कोरियर, पार्सल आदि के द्वारा प्रसाद भी पहुँचा देते हैं। यानी कहीं कोई कसर नहीं। पितरों के तर्पण, श्राद्ध व पिंड दान के लिए भी आउटसोर्सिंग की खूब मदद ली जा रही है।
यह काम खासतौर पर विदेशों में बसे अप्रवासी भारतीयों द्वारा करवाया जाता है। यही वजह है कि गत वर्ष बिहार के विश्व प्रसिद्घ 'गया पितृपक्ष मेला' के मौके पर राज्य सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने प्रवासी भारतीयों की सुविधा के मद्देनजर विदेशों में रहते हुए ही पितरों के लिए ऑनलाइन पिंडदान पूजा की व्यवस्था करने पर बैठक की थी।
इस सुविधा के अंतर्गत प्रवासी भारतीयों से क्रेडिट कार्ड से निर्धारित शुल्क का भुगतान लेकर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए पिंडदान पूजा करवाई जानी थी, लेकिन बाद में पंडों ने इस सेवा को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि यह शास्त्र सम्मत नहीं है। दरअसल यह परदेसियों की चाह से निकली ऑनलाइन राह है।