यदि प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्ठम व द्वादश भावों में कहीं भी मंगल हो तो उसे मंगल दोष कहा जाता है लेकिन उन दोषों के बावजूद अगर अन्य ग्रहों की स्थिति, दृष्टि या युति निम्नलिखित प्रकार से हो, तो मंगल दोष खुद ही प्रभावहीन हो जाता है :-
* यदि मंगल ग्रह वाले भाव का स्वामी बली हो, उसी भाव में बैठा हो या दृष्टि रखता हो, साथ ही सप्तमेश या शुक्र अशुभ भावों (6/8/12) में न हो।
मंगली कन्या सौभाग्य की सूचिका भी होती है। यदि कन्या की जन्मकुंडली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादशभाव में मंगल होने के बाद भी प्रथम (लग्न, त्रिकोण), चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम तथा दशमभाव में बलवान गुरु की स्थिति कन्या को मंगली होते हुए भी सौभाग्यशालिनी व सुयोग्य पत्नी तथा गुणवान व संतानवान बनाती है।