एक घर कुंडली में होता है और दूसरा घर वह जिसमें आप रहते हैं। जिस तरह कुंडली में ग्रह होते हैं उसी तरह आपके घर में भी ग्रह होते हैं। जिस तरह आपके घर में ग्रह होते हैं उसी तरह आपके शरीर को यदि घर माने तो उसमें भी ग्रह होते हैं। अब सवाल यह उठता है कि यह रहस्य क्या है और क्या इसका हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ता है और क्या है समाधान?
घर में ग्रह : दरअसल, वास्तु अनुसार घर में चार कोण होते हैं, ईशान कोण, नैऋत्य कोण, आग्नेय कोण और वायव कोण। ईशान कोण जल एवं भगवान शिव का स्थान है और गुरु ग्रह इस दिशा के स्वामी है। ईशान कोण में पूजा घर, मटका, कुंवा, बोरिंग वाटरटैंक अदि का स्थान बान सकते हैं। आग्नेय कोण अग्नि एवं मंगल का स्थान है और शुक्र ग्रह इस दिशा के स्वामी है। आग्नेय कोण को रसोई या इलैक्ट्रॉनिक उपकरण आदि का स्थान बना सकते हैं। वायव कोण में वायु का स्थान है और इस दिशा के स्वामी ग्रह चंद्र है। वायव कोण को खिड़की, उजालदान आदि का स्थान बना सकते हैं। नैऋत्य कोण पृथ्वी तत्व का स्थान है और इस दिशा के स्वामी राहु और केतु है। नैऋत्य को ऊंचा और भारी रखना चाहिए।
इसी तरह चार दिशा होती है। पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। पूर्व दिशा के स्वामी सूर्य, देवता इंद्र होते हैं। पितृस्थान की प्रतिक यह दिशा खुली होना चाहिए। पश्चिम दिशा के देवता वरूण और ग्रह स्वामी शनि है। यह दिशा भी वास्तु नियमों के अनुसार होना चाहिए।
उत्तर दिशा के देवता कुबेर और ग्रह स्वामी बुध है। यह माता का स्थान है। इसी दिशा को खाली रखना जरूरी है। दक्षिणी दिशा काल पुरुष का बायां सीना, किडनी, बाया फेफड़ा, आतें हैं एवं कुंडली का दशम घर है। यम के आधिपत्य एवं मंगल ग्रह के पराक्रम वाली दक्षिण दिशा पृथ्वी तत्व की प्रधानता वाली दिशा है। यह स्थान भी भारी होना चाहिए।
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शरीर में ग्रह : उसी तरह शरीर में ग्रहों के स्थान होते हैं। शरीर में मस्तक के बीचोबीच सूर्य का, नेत्रों में मंगल का, जिभ और दांत पर बुध का, वीर्य पर शुक्र का, नाभि पर शनि का, सिर और मुख पर राहु का, कंठ से लेकर हृदय तक एवं पैरों पर केतु का, हृदय पर चंद्र का और रक्त पर मंगल का प्रभाव पड़ता है।
इसी तरह यदि हम देखें तो शरीर के भीतर जल पर चंद्र का, वायु पर गुरु का और हड्डी पर शनि का प्रभाव पड़ता है। इसी तरह हाथों में कनिष्ठा बुध की, अनामिका सूर्य की, मध्यमा शनि की, तर्जनी गुरु की और अंगुठा शुक्र का है। अंगुठे के नीचे का स्थान भी शुक्र का है। अंगुलियों के प्रत्येक पोरे राशियों के स्थान है। चारों अंगुलियों में 12 पोर होते हैं। इसीलिए शरीर को स्वस्थ रखना इसीलिए जरूरी है कि ग्रहों का आप पर विपरित असर न हो।
घर और ग्रह : कुंडली में ग्रह अच्छे हैं, लेकिन यदि आपके घर का वास्तु अच्छा नहीं है तो अच्छे ग्रह भी अच्छा असर देने वाले साबित हो इसकी गारंटी नहीं। यह भी तय नहीं कि वे बुरा फल देंगे या नहीं। दूसरी ओर अब यदि आपका घर वास्तु अनुसार है तो कुंडली में बैठे बुरे ग्रह बुरा फल देंगे इसकी गारंटी नहीं, लेकिन अच्छे घर से अच्छा फल जरूर मिलेगा। तो यदि संकट हो तो दोनों को ही दुरस्त करें।
घर की दिशा : घर का मुख्य द्वार सिर्फ पूर्व या उत्तर में होना चाहिए। हालांकि वास्तुशास्त्री मानते हैं कि घर का मुख्य द्वार चार में से किसी एक दिशा में हो। वे चार दिशाएं हैं- ईशान, उत्तर, वायव्य और पश्चिम। लेकिन हम यहां सलाह देंगे सिर्फ दो ही दिशाओं में से किसी एक का चयन करें।
पूर्व या उत्तर का द्वार : पूर्व इसलिए कि पूर्व से सूर्य निकलता है और पश्चिम में अस्त होता है। उत्तर इसलिए कि उत्तरी ध्रुव से आने वाली हवाएं अच्छी होती हैं और दक्षिणी ध्रुव से आने वाली हवाएं नहीं। घर को बनाने से पहले हवा, प्रकाश और ध्वनि के आने के रास्तों पर ध्यान देना जरूरी है।
भूमि का ढाल : सूरज हमारी ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है अत: हमारे वास्तु का निर्माण सूरज की परिक्रमा को ध्यान में रखकर होगा तो अत्यंत उपयुक्त रहेगा। सूर्य के बाद चंद्र का असर इस धरती पर होता है तो सूर्य और चंद्र की परिक्रमा के अनुसार ही धरती का मौसम संचालित होता है।
उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव धरती के दो केंद्रबिंदु हैं। उत्तरी ध्रुव जहां बर्फ से पूरी तरह ढंका हुआ एक सागर है, जो आर्कटिक सागर कहलाता है वहीं दक्षिणी ध्रुव ठोस धरती वाला ऐसा क्षेत्र है, जो अंटार्कटिका महाद्वीप के नाम से जाना जाता है। ये ध्रुव वर्ष-प्रतिवर्ष घूमते रहते हैं। दक्षिणी ध्रुव उत्तरी ध्रुव से कहीं ज्यादा ठंडा है। यहां मानवों की बस्ती नहीं है। इन ध्रुवों के कारण ही धरती का वातावरण संचालित होता है। उत्तर से दक्षिण की ओर ऊर्जा का खिंचाव होता है। शाम ढलते ही पक्षी उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हुए दिखाई देते हैं। अत: पूर्व, उत्तर एवं ईशान की और जमीन का ढाल होना चाहिए।
कुंडली के ग्रहों का निदान :
* लाल किताब के अनुसार अशुभ ग्रहों के सामान्य उपाय करके भी हम इनके प्रभाव को कम कर सकते हैं, लेकिन यह उपाय किसी लाल किताब के विशेषज्ञ से पूछकर ही करें। इसका कारण यह कि कुंडली अनुसार किसी को दान करना है या नहीं, किसी को कोई वस्तु बहाना है या नहीं आदि बातों का अध्ययन करना होता है।
1.सूर्य के लिए सामान्य उपाय:
*प्रत्येक कार्य मीठा खाकर और जल पीकर करे।
*बहते पानी में गुड, ताम्बा या ताम्बे का सिक्का बहाए।
*ताम्बा व गेहू का दान करे।
*माणिक्य अथवा ताम्बा धारण करे।
*कुकर्म और गलत काम से बचे।
2.चन्द्र के लिए सामान्य उपाय:
*मां के चरण स्पर्श कर के आशीर्वाद ले।
*दूध या पानी भरा बर्तन सिरहाने रख कर सोएं और अगले दिन कीकर की जड़ में सारा जल डाल दें।
*चावल, दूध और चांदी का दान करे।
*मोती या चांदी धारण करे।
3.मंगल के लिए सामान्य उपाय:
*सफ़ेद सुरमा आंखों में लगाए।
*ताम्बा अथवा मूंगा धारण करें।
*बहते पानी में रेवड़िया, बताशे, शहद व सिंदूर बहाए।
*मसूर, मिठाई या मीठे भोजन का दान करे।
*भाई की सेवा करे।
*मंगलवार का व्रत रखे व हनुमानजी को सिंदूर का चोला चढ़ाएं।
4.बुध के लिए सामान्य उपाय:
*बुधवार का व्रत करे।
*कन्याओं को हरे वस्त्र और हरी चुड़िया दान करें।
*पन्ना धारण करें।
*दांत साफ रखे और नाक छिदवाएं।
*ताम्बे के पत्तर में छेद करके बहते पानी में बहाएं।
*दुर्गा उपासना व दुर्गा सप्तसती का पाठ करे।
*साबुत हरे मुंग का दान करें।
5.गुरु के लिए सामान्य उपाय:
*गुरुवार का व्रत रखें।
*माथे पर पिला तिलक लगाएं।
*केसर खाएं या नाभि व जीभ पर लगाएं।
*हरीपूजन या हरिवंश पुराण का पाठ करे।
*पीपल की जड़ में जल चढ़ाएं।
*साधु और ब्राह्मणों की सेवा करे व् उनका आशीर्वाद लें।