हमारे सनातन धर्म में एवं ज्योतिष शास्त्र में योगों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। इस तथ्य से पाठकगण भली-भांति परिचित हो चुके हैं। आपने अक्सर पंचांग अथवा कैलेंडर में द्विपुष्कर व त्रिपुष्कर योग लिखा देखा होगा। लेकिन क्या आपको पता है कि ये योग कब बनते हैं एवं इनका क्या फल होता है? यदि नहीं, तो आज हम 'वेबदुनिया' के पाठकों के लिए यह खास जानकारी दे रहे हैं।
कब बनता है 'द्विपुष्कर योग'?
जब रविवार, मंगलवार, शनिवार के दिन द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी में से कोई तिथि हो एवं इन 2 योगों के साथ उस दिन चित्रा, मृगशिरा व धनिष्ठा नक्षत्र हो तब 'द्विपुष्कर योग' बनता है। 'द्विपुष्कर योग' में जिस कार्य को किया जाता है, वह दोगुना फल देता है। इस योग का शुभाशुभ से कोई सीधा संबंध न होकर उस दिन के आनंदादि योग के फल को द्विगुणित अर्थात दोगुना करने से है। 'द्विपुष्कर योग' वाले दिन यदि कोई शुभ कार्य किया जाए तो उसके फल में दोगुनी वृद्धि होती है, वहीं इस योग वाले दिन यदि कोई अशुभ मुहूर्त बना हो तो वह भी अपनी अशुभता में दोगुनी वृद्धि करता है। अत: 'द्विपुष्कर योग' वाले दिन मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
कब बनता है 'त्रिपुष्कर योग'?
जब रविवार, मंगलवार व शनिवार के दिन द्वितीया, सप्तमी व द्वादशी में से कोई तिथि हो एवं इन 2 योगों के साथ उस दिन विशाखा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, पुनर्वसु व कृत्तिका नक्षत्र हो, तब 'त्रिपुष्कर योग' बनता है। 'द्विपुष्कर की योग की भांति ही 'त्रिपुष्कर योग' में भी जिस कार्य को किया जाता है, वह 3 गुना फल देता है।
'त्रिपुष्कर योग' का भी शुभाशुभ से कोई सीधा संबंध न होकर उस दिन के आनंदादि योग के फल को त्रिगुणित अर्थात 3 गुना करने से है। 'त्रिपुष्कर योग' वाले दिन यदि कोई शुभ कार्य किया जाए तो उसके फल में 3 गुना वृद्धि होती है, वहीं इस योग वाले दिन यदि कोई अशुभ मुहूर्त बना हो तो वह भी अपनी अशुभता में 3 गुना वृद्धि करता है। अत: 'त्रिपुष्कर योग' वाले दिन भी मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना चाहिए।