मित्रों हमारे जीवन में आंखों की ज्योति के बिना जीवन नरक के समान है। आप सभी को जानकर हैरत होगी कि पुराने ज़माने में सैकड़ों वर्ष पूर्व आंखों का चश्मा नहीं होता था तब भी लोगों की आंखें या तो उम्र बढ़ने की वजह से या बीमारी की वजह से कमज़ोर होती थीं लेकिन लोग वेद मंत्रो चाक्षुषोपनिषद(चाक्षुसी विद्या) के द्वारा अपनी आंखों की रोशनी ठीक या स्थिर कर लेते थे। ऋषियों-मुनियों की आंखें बिल्कुल स्वस्थ होती थीं।
सूर्य नेत्रों, बुद्धि और तेज के देवता हैं और उनकी उपासना से आंखों के रोग नष्ट होकर नेत्र ज्योति बढ़ती है, बुद्धि का विकास होता है और व्यक्ति का ओज-तेज बढ़ता है।
सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं। जो भी व्यक्ति सूर्य की उपासना करता है वह आकर्षक व्यक्तित्व का धनी हो जाता है।
संसार में ऐसा व्यक्ति जिस किसी से मिलता है वह प्रिय हो जाता है और उसके सारे कार्य सहज ही सरलतापूर्वक होते जाते हैं।
आंखों की ज्योति बढ़ाने और नेत्र रोगों के शमन के लिए वैदिक परम्परा से चाक्षुषोपनिषद कारगर प्रयोग है।
रोजाना भोर में सूर्य के सम्मुख तीन बार जल से अर्घ्य चढ़ाने के बाद यदि इसका पाठ किया जाए तो अद्भुत लाभ अनुभव किया जा सकता है।
संभव हो तो रविवार को इसके ग्यारह या इससे अधिक पाठ करें। इसके नित्य प्रयोग से चश्मे का नंबर तक कम हो जाता है। इसे आजमाएं और अपने अनुभवों से अवगत कराएं।
इस चाक्षुषी विद्या के श्रद्धा-विश्वासपूर्वक पाठ करने से नेत्र के समस्त रोग दूर हो जाते हैं। आंखों की ज्योति स्थिर रहती है। इसका नित्य पाठ करने वाले के कुल में कभी कोई अंधा नहीं होता। पाठ के अंत में गन्धादियुक्त जल से सूर्य को अर्घ्य देकर नमस्कार करना चाहिए।
इस मंत्र का प्रतिदिन पाठ करने से आंखों की रौशनी ठीक रहती है तथा पुरानी आंखों की समस्या से भी मुक्ति मिल सकती है|