फिर एक तांबे के लोटे में शुद्ध जल, काले तिल, जौ और थोड़ा गंगाजल मिलाएं। अपनी अनामिका उंगली यानी रिंग फिंगर में कुश/ पवित्र घास की अंगूठी धारण करें या हाथ में कुश पकड़ें। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें, क्योंकि यह पितरों की दिशा मानी जाती है।
'ॐ आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम' या
'ॐ पितृभ्यः नमः' मंत्र का जाप करते हुए पितरों का स्मरण करें और धीरे-धीरे जल अर्पित करें। इस अवसर पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मणों, गरीबों या जरूरतमंदों को अन्न, सफेद वस्त्र, काले तिल, घी, आटा, गुड़ और दक्षिणा का दान करें। गायों और कुत्तों को रोटी खिलाना भी शुभ माना जाता है।
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