'सावन संक्रांति' अर्थात् 'कर्क संक्रांति' से वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है। देवताओं की रात्रि प्रारंभ हो जाती है और 'चातुर्मास' या 'चौमासा' का भी आरंभ इसी समय से हो जाता है। यह समय व्यवहार की दृष्टि से अत्यधिक संयम का होता है, क्योंकि इसी समय तामसिक प्रवृतियां अधिक सक्रिय होती हैं। व्यक्ति का हृदय भी गलत मार्ग की ओर अधिक अग्रसर होता है। अत: संयम का पालन करके विचारों में शुद्धता का समावेश करके ही व्यक्ति अपने जीवन को शुद्ध मार्ग पर ले जा सकने में सक्षम हो पाता है।
कर्क संक्रांति के पुण्य समय उचित आहार-विहार पर विशेष बल दिया जाता है। इस समय में शहद का प्रयोग विशेष तौर पर करना लाभकारी माना जाता है। दक्षिण अयन की संक्रांति में व्रत, दान कर्म एवं स्नान करने मात्र से ही प्राणी संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।
कर्क संक्रांति को 'दक्षिणायन' भी कहा जाता है। इस संक्रांति में व्यक्ति को सूर्य स्मरण, आदित्य स्तोत्र एवं सूर्य मंत्र इत्यादि का पाठ व पूजन करना चाहिए, जिससे अभिष्ट फलों की प्राप्ति होती है। संक्रांति में की गई सूर्य उपासना से दोषों का शमन होता है। संक्रांति में भगवान विष्णु का चिंतन-मनन शुभ फल प्रदान करता है।
श्रावण मास में प्रतिदिन 'शिवमहापुराण' व 'शिव स्तोस्त्रों' का विधिपूर्वक पाठ करके दूध, गंगाजल, बिल्वपत्र, फल इत्यादि सहित शिवलिंग का पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही इस मास में ॐ नम: शिवाय: मंत्र का जाप करते हुए शिव पूजन करना लाभकारी रहता है। इस मास के प्रत्येक मंगलवार को मंगलागौरी का व्रत, पूजन इत्यादि विधिपूर्वक करने से स्त्रियों के विवाह, संतान व सौभाग्य में वृद्धि होती है।