कुश को हमारे शास्त्रों में विशेष शुद्ध माना गया है। हमारे शास्त्रों में जप इत्यादि करते समय कुश को पावित्री के रूप में धारण करने का नियम है। सामान्यत: किसी भी अमावस्या को उखाड़ा गया कुश एक मास तक प्रयोग किया जा सकता है। भाद्रपद मास की अमावस्या पर धार्मिक कार्यों, पूजा-पाठ आदि के लिए वर्ष भर तक चलने वाली कुशा का संग्रहण किया जाता है। इसी वजह से यह अमावस्या कुशा के संग्रहण का दिन मानी गई है।
इस दिन नदी, तट, सरोवर स्नान, तर्पण और दान-पुण्य के लिहाज से इस तिथि का बहुत अधिक महत्व कहा गया है। इसे पिथौरा अमावस्या भी कहते हैं, अत: हिंदू धर्म में इस अमावस्या तिथि को पितरों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध कर्म, तर्पण, पिंडदान आदि के लिए खास माना जाता है।
इस दिन विशेष तौर पर सुहागिन महिलाओं द्वारा संतान प्राप्ति एवं उसकी दीर्घायु के लिए मां दुर्गा का पूजन किया जाता है। भाद्रपद अमावस्या के दिन घर-परिवार की सुख-शांति, धन-संपदा तथा पितृओं का आशीष पाने के लिए कई उपाय भी किए जाते हैं।
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